मन को स्थिर रखकर कैसे निर्णय लें?
जब आप कहते हैं कि मैं व्यस्त चल रहा हूँ,तब क्या आप अपनी व्यस्तता को मन की स्थिरता से जोड़ते हैं?
जिस चीज़ में कोई तकनीक इस्तेमाल होती है तो वो कहीं हद तक उस तकनीक की सीमाओं से बँधी है.क्या आपको अपने कंप्यूटर या फ़ोन को अपग्रेड करना होता है?कहते हैं शांति से सोचिए क्यों आप बेचैन रहकर क्यों नहीं सोच सकते?स्थिरता जरूरी है.बिना स्थिरता के आप dynamic या गतिज चीजों के बारे में नहीं सोचते.अगर आप जीवन को प्रतिस्पर्धा की भावना से सोचते हैं चाहे वह स्वयं के लिए हो या दूसरों के लिए,तो ये आपको बेचैन करती है यदि आप उसमें जीतते हैं तो ये काफी अच्छा अनुभव कराती है लेकिन अगर आप हारते हैं तो आप एक भयंकर बेचैनी के शिकार हो जाते हैं जो दूसरों से खुदके हारने का डर विकसित कर देती है.आप किसी रोड पर खड़े होकर 2 मिनट के अपने अनुभव को देखें,आप पाएंगे कि कोई भी आपको रुका हुआ नजर नहीं आएगा वे सब जल्दी में बस जा रहे हैं उन्हें जल्दी है किसी को ऑफिस की,किसी को अपने काम की.स्थिरता के रूप में जीवन नहीं हो सकता,जो भी गतिज है वही विकास कर रहा है.लेकिन अगर आप ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि जो चीज़ किसी को dynamic बना रही है वो स्थिर है.क्या आप कार के इंजन को दौड़ते हुए देखते हैं या कार को?वैसे ही आप उन सभी चीजों को कर सकते हैं जो dynamic हैं लेकिन उसके लिए आपके मन को और दिमाग को शांत रहना जरूरी है.अंदर से शांत और बेचैन होने का फर्क बस आप इस तरह से लें कि जब आप आंखें बंद करते हैं आपके सामने सारी दुनिया होती है और जब आप आंखें बंद करते हैं तब सबकुछ शून्य.और शून्य से शुरू करना उतना तकलीफदेह नहीं है जितना ऊपर से नीचे आना.हर चीज़ स्पेशल तब बन जाती है जब आप 100 में से 99 कमियों को भूलकर उस 1 के बारे में सोचते हैं जिसका आप अपने लिए सही उपयोग कर सकते हैं.
जब भी आप कोई निर्णय लें,तब ये सुनिश्चित कर लें कि क्या मैं शांत हूँ जैसा कि मैं आनंद की स्थित मैं होता हूँ?क्या मैं खुलकर खुदको व्यक्त करने की हालत मैं हूँ?क्या ये निर्णय मैं किसी मजबूरी से ले रहा हूँ?जब आप निर्णय लें तो भूल जाएं कि कौन आपसे कितना आगे है या आपको किसी को पीछे कारण है.बस अपने हर निर्णय को आनंद से लें क्योंकि आपको कोई मजबूर नहीं कर रहा तो आप देखेंगे कि कुछ बेहतर जरूर होगा.
जिस आदमी ने अपने दिमाग का इस्तेमाल करना बंद कर दिया तो समझो उसने आगे बढ़ने का रास्ता बंद कर दिया,अब आप कहोगे दिमाग तो हर वक़्त चलता है.बात भी सही है कि दिमाग हर वक़्त चलता है,सोते जागते,चलते-फिरते दिमाग तो बंद ही नहीं है.अगर बंद नहीं है तो हर आदमी सफल क्यों नहीं है?बस फर्क इस बात का है कि दिमाग चल किस काम के लिए रहा है,ये आपके ऊपर है कि आप अपने दिमाग से किस तरह का काम ले रहे हो.जिस इंसान के पास समाधान करने की शक्ति जितनी ज्यादा होती है उसके रिश्तों का दायरा उतना ही विशाल होता है.एक सीधी सी बात है जो जितना अपने दिमाग को इस्तेमाल कर रहा है वो ज़िन्दगी में उतना ही आगे जा रहा है.कई ऐसे किस्से हैं जहाँ लोगों के पास 100 रुपये भी नहीं होते थे अपनी पसंद की चीज़ खरीदने को और वो आज करोड़ों में खेल रहे हैं.पैसे से पैसा बनता है ये बात सही है पर जब पैसा ही न हो लगाने के लिए तो क्या किया जाए?इस case में आप दिमाग का इस्तेमाल कर सकते हैं.बैठकर ठंडे दिमाग से सोचें कि वो कौनसे तरीके हैं जिनसे मैं जीरो इन्वेस्टमेंट से शुरू कर सकता हूँ.या अगर पैसा है लगाने को तो वो क्या है जिसे मैं बेहतर तरीके से कर सकता हूँ.सबका अपना-अपना इंटरेस्ट है,आपका किसमें है ये मायने रखता है.जिसमें भी हो उसके लिए ढंग से प्लानिंग करें.एक बात जो याद रखनी है कि चीजों को सीखो,सीखना थोड़ा सा मुश्किल होता है लेकिन असंभव नहीं.मेहनत के साथ-साथ बुद्धि का सही इस्तेमाल ही सफलता देता है,दिमाग में ये भावना रखें कि परिस्थितियां जो भी हों मुझे अपना काम आनंद और अनुभव से करना है.दिमाग में सिर्फ सफलता को मत रखें,ये एक सबसे खतरनाक भावना है कि कोई चमत्कार होगा और आप बुलंदियों पर पहुँच जाएंगे.हर चीज़ का एक तरीका होता है बस आपको उसे फॉलो करना है.मुश्किलें तभी हावी होती हैं जब आप उन्हें हल करना नहीं सीख पाते.
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