अगर ये समझ लिया तो आप आनंद से जीना सीख जाएंगे

क्या आपके भीतर शरीर में होने वाली यौगिक प्रक्रियाएं आपकी बाहरी परेशानियों से ज्यादा जटिल नहीं हैं?आपको खट्टा पसंद नहीं है लेकिन आपके पेट में पाचन की क्रिया को व्यवस्थित करने के लिए दुनिया का सबसे तेज़ एसिड मौजूद है,हैं न?बिना Hydroclrolic एसिड के आपके पेट में पेप्टिक एंजाइम जो कि खाना पचाने में मदद करता है सक्रिय नहीं हो सकता.तो क्या आपकी पसंद नापसंद का आपकी शारीरिक क्रियाओं को फर्क पड़ता है?बिल्कुल नहीं.हाँ आपको नीम या करेले का रस तो बिल्कुल पसंद नहीं होगा,लेकिन जैसे ही ये आपके भीतर पहुँचता है ये कुछ न कुछ अच्छा असर दिखाता है.आपका पाचनतंत्र स्वाद का मतलब नहीं जानता,ये सिर्फ आपके जीभ के  gustatory receptors हैं जो विभिन्न चीजों को स्वाद से खाना सिखा रहे हैं.आप शायद अपनी 1 महीने पहले की बात याद न रख पाए हों लेकिन आपके शरीर की कोशिकाएं ये समझती हैं कि आपकी आगे आने वाली पीढ़ी में किस तरह की सूचनाओं को भेजना है,आपके DNA के सिकुड़ने से लेकर chromosome के एक जीन तक,आपका शरीर हर उस चीज़ का हिसाब रखता है जो आप बाहरी दुनिया में कर रहे हैं.एक इंसान जो अपना कार्य पूरे उत्साह से कर रहा है वहीं दूसरे को लगता है,नहीं..नहीं चीजें वैसी क्यों हैं?ये उसके साथ ही क्यों हो रहा है?क्या दोनों की समझ का स्तर अलग है या उत्साह का फर्क.असल में आप अपने भीतर ही बहुत सारे अनुभवों को इकट्ठा कर रहे हैं और वही अनुभव आपकी वास्तविक दुनियां में झलक रहे हैं.कोई दूसरा व्यक्ति आपको मानसिक तौर पर बेचैन कर सकता है लेकिन अगर आप जानते हैं कि आपको उस से कैसे निपटना है तो ये बार-बार नहीं होने वाला.क्या आप vaccine के सिद्धांत को समझते हैं?एक छोटे बच्चे को जब पोलियो की vaccine दी जाती है तो बच्चा 3-4 दिन तक बीमार सा रहता है,बच्चे की माँ बेचैन हो उठती है कि सही सलामत बच्चे को बीमार कर दिया.असल में पोलियो वायरस के कमजोर एंटीजन को शरीर में पहुँचाया जाता है,भले वो उस वायरस का कमजोर एंटीजन है लेकिन वो अपना काम ठीक से करता है और शरीर में इम्यून सिस्टम को एक्टिवेट करता है.एंटीजन को आप किसी वायरस या बैक्टीरिया के एक जीन के रूप में समझ सकते हैं जो उस वायरस या बैक्टीरिया की खास सूचनाओं को खुदमे लेकर चलता है.शरीर की कोशिका उस एंटीजन से लड़ने के लिए खास तरह के एंटीबॉडी तैयार करती है जो एक खास तरह के प्रोटीन होते हैं जिन्हें interferons कहा जाता है.ये उस एंटीजन से लड़ते हैं और उसे नष्ट कर देते हैं.इस पूरी प्रक्रिया में अब कोशिकाएं भविष्य में इसी तरह के किसी एंटीजन से लड़ने के लिए खुदको तैयार कर चुकी होती हैं.अब अगर अगली बार कोई पोलियो का वायरस शरीर में घुसता है तो कोशिका उसी तरह के प्रोटीन फिरसे तैयार कर उसे खत्म कर देती हैं,और बच्चा पूरी जिंदगी भर पोलियो के वायरस से बचा रहता है.क्या इन सभी प्रक्रियाओं में एक बेहतर जीवन की बुनियाद नहीं दिखती?जब आपके पास अच्छे अनुभव होते हैं तब आप किसी कार्य को ज्यादा बेहतर तरह से पूरा कर पाते हैं.फर्क इस से नहीं पड़ता कि आप कार्य कर रहे हैं फर्क इस से पड़ता है कि आप कार्य को कितने आंनद से कर रहे हैं.किसी कार्य को करने के लिए आपको सीखना चाहिए कि जैसे मेरे भीतर वे कोशिकाएं सीखती हैं और तैयार होती हैं आगे से और बेहतर करने के लिए,ठीक उसी तरह आपको भी तैयार रहना है बेहतर बनने के लिए,यही आपकी सच्चाई है.

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