गुस्से को कैसे नियंत्रित करें?Anger management


अक्सर देखा जाता है कि इंसान के अगर काम बिगड़ते हैं तो उसकी खास वजह गुस्सा ही है.गुस्से में इंसान पता नहीं क्या-क्या बोल देता है?क्या-क्या कर देता है?जिसकी वजह से उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.हमें बचपन से यह तो सिखाया जाता है कि गुस्सा नहीं करनी चाहिए गुस्सा करना बेकार है, इससे कई सारे नुकसान होते हैं.नुकसान in the sense हमारी personnel life में काफी सारी टेंशन हो जाती है.जब हम कुछ भी देखते हैं अपने आसपास कुछ गलत हो रहा हो या फिर दूसरों के लिए कुछ गलत हो रहा हो तो गुस्सा आना स्वाभाविक है.अब आपको गुस्सा के नियंत्रण से संबंधित बहुत सारी theories और terminologies इंटरनेट पर मिल ही जाएंगी, लेकिन वह काम कितना करती हैं हमारी प्रैक्टिकल ज़िन्दगी में?वे काम इसलिए भी नहीं कर पातीं क्योंकि वे थ्योरी हैं और हम उन्हें उस रूप में अप्लाई नहीं कर पाते.गुस्सा आने के सबके अलग-अलग कारण होतें हैं,जैसे कि हम चीजों को अपनी तरह से बदलना चाहते हैं अगर चीजें हमारी सोच के हिसाब से नहीं चलती तब चिड़चिड़ी आती है.या जब हम तकलीफ में होते हैं तब हम उम्मीद करते हैं कि हमें प्यार मिले लेकिन बजाय इसके जब कोई हमें उल्टा सीधा बोले तो गुस्सा आना स्वाभाविक है.
एक गांव में एक किसान ने नेवला पाल रखा था किसान जब भी बाहर जाता,वह अपने पुत्र को नेवले के भरोसे छोड़ जाता.1 दिन किसान और उसकी पत्नी दोनों एक साथ ही बाहर चले गए और जब वापस लौटे तो देखा कि पुत्र के पास बैठे नेवले का मुंह रक्त से लाल था.किसान को यह समझ आया कि नेवले ने ही उसके पुत्र को मार डाला है.उसने बिना अधिक सोचे समझे तुरंत अपनी लाठी से उस नेवले को मार डाला और जैसे ही अपने पुत्र की तरफ बढ़ा तो यह देखकर कि उसका पुत्र सही सलामत है उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ.तभी अचानक उसकी नजर दूसरी ओर पड़ी,जहां पर एक साँप मरा हुआ पड़ा था.अब किसान समझ चुका था कि उसने कितना बड़ा पाप कर दिया है यह सोचकर वह फूट-फूट कर रोने लगा कि उसके पुत्र को बचाने वाले को ही उसने मार दिया है.बस ग़लतफहमी,आवेश और क्रोध से उसने अपनी ही खुशियां छीन ली.
यह कहानी हम में से ज्यादातर लोगों ने सुनी या पढ़ी ही होगी कि बिना सोचे समझे क्रोध करना कितना महंगा पड़ता है.गुस्सा कैसे कंट्रोल करें यह इतना आसान है जितना आपने सोचा ही नहीं.जब सामने वाला कुछ उल्टा-सीधा बोल रहा है और आपको ये लग रहा है कि वह गलत उल्टा-सीधा बोल रहा है तो आपको बस कुछ देर शांत रहना है इस समय अंतराल में आपके अंदर एक अच्छा सा आईडिया आ सकता है और सकता है कि आप उसे अच्छा सा जवाब दे पाएं या हो सकता है कि आपकी शांति से ही मामला निपट जाए.जिसके अंदर गुस्सा जीरो हो गई तो समझ लो उसका कभी कोई काम बिगड़ना नहीं है.इसे आप ऐसे समझें:एक कार है जिसके अंदर एक ड्राइवर है,अगर ड्राइवर को कार अच्छे से चलाना आता है फिर चाहे स्पीड 70 हो 100 हो या पूरी हो.एक्सीडेंट नहीं होगा अगर उसकी कंट्रोलिंग अच्छी है.मान लो कार 100 की रफ्तार में चल रही है एकदम से सामने कुछ भी आ जाए अगर ड्राइवर हड़बड़ा गया या डर गया तो हो सकता है वह एक्सीलरेटर और दबा दे.लेकिन जिसको कार चलाने का अच्छा एक्सपीरियंस होगा वह एक्सीलरेटर थोड़ी ना दबाएगा,वह तो ऐसी स्थिति अमूमन फेस करता ही होगा.
बस एक यही सिंपल लॉजिक है हमारी गुस्सा का भी.हमारा ब्रेन है ड्राइवर और कार है हमारा शरीर.हम जैसे इसे ऑपरेट करना चाहेंगे वो वैसे ही ऑपरेट होगा और अगर कंट्रोलिंग अच्छी है तो कोई एक्सीडेंट होने के चांसेस बनते ही नहीं है.तो आपको क्या करना है?बस कंट्रोल रखना है अपने ऊपर.फिर भी कुछ लोगों को लगता है कि गुस्सा नहीं कंट्रोल की जा सकती.बात भी सच है,दुनिया में शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसे कभी गुस्सा ही न आए,जाहिर सी है सभी को आती है लेकिन सभी अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया देते हैं.अगर आपको लगता है कि गुस्सा मेरे लिए है तो गुस्सा बेकार है अगर लगे यह दूसरों के लिए है,तो हो सकता है अच्छी भी हो सकती है.जैसे हमें अगर पता चलता है कि किसी के साथ कुछ गलत हो रहा है तो हमारे अंदर आक्रोश पैदा होता है और हम प्रतिक्रिया देना शुरू कर देते हैं तो यह कहीं हद तक अच्छा भी है इसका आपके शरीर पर ज्यादा प्रतिकूल असर नहीं होता.लेकिन जब आपका किसी बात पर किसी व्यक्ति से झगड़ा हो रहा हो तो इसमें आप किसका नुकसान कर रहे होते हैं?जाहिर है कि खुद का दिमाग टेंशन में आएगा और हो सकता है आगे का पूरा दिन आपका कार्य भी बाधित हो जाए.तो बस आप इतनी छोटी सी बात याद रखो कि इस गाड़ी की कंट्रोलिंग पावर सिर्फ आपके हाँथों में है. आप इसका एक्सीडेंट करना चाहते हैं या फिर तेज रफ्तार में भी आप उस को कंट्रोल करना चाहते हैं.आप एक कार हो और उसका ड्राइवर है आपका ब्रेन इइसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी गाड़ी 40 की स्पीड चल रही है या 100 की.अगर ड्राइवर को सही से चलाना नहीं आता तो एक्सीडेंट तो होना ही होना है.तो आप अपने अंदर एक स्टेबिलिटी डिवेलप करें कि अगर मेरी रफ़्तार ज्यादा है यानि माहौल आपकी सोच से विपरीत है तो भी बस आप को आंतरिक रूप में शांत रहना है.जब हम गुस्सा को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं तो जीवन की बड़ी-बड़ी समस्याओं को दावत दे रहे होते हैं चाहे वह शारीरिक हो,मानसिक हो,भावनात्मक हो या फिर सामाजिक.एक छोटा सा बच्चा जिसकी जिद पूरी नहीं होती तो वह चीखने-चिल्लाने लगता है,अगर बेटे ने घर में सामान बिखेर दिया हो तो मां को गुस्सा आ जाती है वह चिल्लाने लगती है,आप मार्केट गए और कोई सामान भूल आए तो भी आपपर डांट पड़ने लगती है. हम देखते हैं कि कैसे लोग झगड़ना शुरू कर देते हैं,कहीं बस में या ट्रेन के डिब्बे में देखेंगे तो वहां सीट के पीछे लड़ाई होने लगती है.ये स्वाभाविक है कि आप कभी-कभी गुस्सा हो जाते हैं ये जानते हुए कि गुस्सा करना एक बुरी आदत है.जब तक गुस्सा हमारे काबू में है तब तक यह सही है.अगर आप गुस्से में आकर झगड़ा या मारपीट करने लगें तो इससे या आपको चोट पहुंचेगी या दूसरों को चोट पहुंचेगी.जिस तरह से बेकाबू आग पूरे घर को जला सकती है उसी तरह से बेकाबू गुस्सा हमारा काम,नाम सब कुछ खराब कर सकती है. दूसरों के साथ हमारे रिश्ते भी खराब हो सकते हैं या खत्म भी हो सकते हैं.तो जब भी आप गुस्से से उबल रहे हों तो एक गहरी सांस लेनी चाहिए और शांत रहना चाहिए बस कुछ ही सेकेंड तक ऐसा करना चाहिए.चिल्लाने के बजाय कभी यह सोचो कि आखिर गलती किसकी है कहीं समस्या की वजह मैं ही तो नहीं?नीतिवचन 1417 पवित्र बाइबल में भी यह लिखा है कि जो झट से क्रोध करे वह बेवकूफी का काम भी करेगा.नीतिवचन 1632 में आगे यह लिखा है कि विलंब या देरी से क्रोध करना वीरता से और अपने मन को वश में रखना नगर के जीत लेने से उत्तम है.जो लोग ज्यादा गुस्सा करते हैं उनसे अन्य लोग दूर भागने लगते हैं जैसे कि फूटते हुए ज्वालामुखी से लोग दूर भागते हैं.जब आप अपने गुस्से को काबू में नहीं रखते हो तो दूसरों की नजरों में भी गिर जाते हो.गुस्सा दिखाने से लोग आपको पसंद नहीं करते बल्कि आप से डर जाते हैं कि भाई वह तो बहुत गुस्से वाला है उसे तो गुस्सा के अलावा और कुछ आता ही नहीं.
मेरे घर के बाहर गार्डन टाइप है जहां पेड़-पौधे हैं,एक दिन मैं वहीं बैठ कर खाना खा रहा था,अचानक मेरी नजर एक गिलहरी पर पड़ी.मैने रोटी का टुकड़ा उसे डाला,उसने झट से उठाया और भाग गई.मैं जैसे ही अपने लिए और रोटी लेकर वापस वहीं बैठ कर खाना खाने लगा तो मैंने देखा कि वह गिलहरी दोबारा वापस आई तो मैंने एक और रोटी का टुकड़ा उसे डाल दिया,उसने झट से उठाया और भाग गई थोड़ी देर बाद यही फिर से हुआ लेकिन अगले दिन मैंने थोड़ा सा परिवर्तन देखा.पिछले दिन की उपेक्षा उसके अंदर मेरे प्रति उतना डर नहीं था.मतलब अब उसे यह अहसास था कि मैं उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊँगा और कुछ दिन बाद अब मैं जब भी उसे कुछ खाने को डालता हूं तो वह मेरे बिल्कुल पास आ जाती है,डरती नहीं है.अब आप सोचो कि किस में ज्यादा शक्ति है?हमारे दिखाए डर में या हमारे स्नेह में.जब छोटी सी गिलहरी इस भावना को बिना शब्दों के समझ सकती है तो हम तो इंसान हैं जो एक दूसरों की जुबान को समझ सकते हैं.आपको गुस्सा आता है तो यह मत कहिए कि मैं ऐसा ही हूं अगर आप यही बोलोगे कि मैं ऐसा ही हूं तो एक दिन ऐसा आ जाएगा कि लोग आप से दूरी बनाने की कोशिश करते रहेंगे,सामने कुछ और कहेंगें पीठ पीछे कुछ और कहेंगे.आप 1 या 2 महीने चेक करो कि आपकी आदत में कितना बदलाव आया है?जब आपको बहुत तेज गुस्सा आया हो तो आप लिखो कि उस दिन क्या हुआ था और आपने क्या कहा था या फिर क्या किया थाअगली बार जब आपको किसी बात पर गुस्सा आए तो आप दुबारा वही दोहराने के वजाय अच्छी तरह से पेश आ सकते हैं जैसा कि आपने सोचा था.अगर परिस्थिति बहुत ज्यादा खराब है तो आपके दिमाग में जो सबसे पहले आता है उसे मत बोलिए थोड़ा रुक लीजिए.जब हमें लगता है कि हालात बिगड़ने वाले हैं तो कई बार वहां से चले जाना बेहतर होता है और फिर उस बारे में सोचते रहने के वजाय आप खुद को किसी काम में लगाएं जो आपको अच्छा काम लगता है.बड़ा कौन है इस दुनिया में?यदि कोई समझता है कि वह बड़ा है तो अपनी जिंदगी का बस 1 मिनट खरीद कर दिखा दे.मैं मान लूंगा कि हां उससे बड़ा कोई नहीं.सिर्फ अपने अंदर का अहंकार बड़ा होता है कि मैं बड़ा हूं,मैं सब कुछ कर सकता हूं,इसमें तो मेरी इंसल्ट हो जाएगी,मैं क्यों करूं ऐसा?मैं यह कर सकता हूं,मेरी पहुँच इतनी है.अगर आपकी पहुँच किसी के दिल तक नहीं तो सच मानिए आपकी पहुँच कहीं भी नहीं.
सबसे बड़ा एहसास होता है माफी का एहसास.जब आप किसी को माफ कर देते हो तो आप बहुत बड़े हो जाते हो,किसी से अगर गलती हो गई है तो उसे माफी देना सीखें.आप जानते हैं कि इंसान से ही गलती होती है कोई भगवान नहीं है कि उससे कोई गलती नहीं होगी.इसलिए हमेशा अपने अंदर माफी का भाव जरूर रखना चाहिए.कहीं पर यह भी बताया जाता है कि अपने गुस्से पर काबू पाना बचपना छोड़ने और समझदार बनने की निशानी है.समझदार इंसान जानता है कि एक दूसरे से शांति से बात करके ऐसे मामले को निपटाया जा सकता है.अगर आप हड़बड़ाकर काम करोगे तो क्या वो जल्दी से हो जाएगा?वहीं अगर शांत दिमाग से करोगे तो वह काम और भी अच्छा हो जाएगा.श्रीमद भगवत गीता के अध्याय 2 में श्लोक 63 में लिखा हुआ है:
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।
(From anger arise ignorance from ignorance there is a delusion and loss of memory,this together destroy intellect,with the destruction of intellect the person is totally degraded)
अर्थात,क्रोध से अज्ञानता का भाव उत्पन्न हो जाता है, अज्ञानता से स्मृति यानि मेमोरी में भ्रम पैदा हो जाता है, स्मृति में भ्रम पैदा हो जाने से बुद्धि यानी ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है,और बुद्धि का नाश हो जाने से इंसान अपनी स्थिति से गिर जाता है.
यदि आपको सबका सम्मान,प्यार पाना है तो कभी भी अपने आप को बड़ा मत समझो हमेशा अपने अंदर प्यार,दया और दूसरों के लिए समान रखो.आप देखेंगे कि तब दुनिया में लोग आपके बगैर कभी नहीं रह सकते.

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