ज़िन्दगी की कीमत (खुदको पहचानो)
यदि आपको लगता है कि आपके पास वह कुछ क्यों नहीं है जो आप हमेशा पाने की इच्छा रखते हैं तो ज़रा सोचिए कि अभी आपके पास क्या है?एक वह इंसान जो किसी एक्सीडेंट का शिकार होकर जब हॉस्पिटल में भर्ती होता है और जिंदगी-मौत के बीच जूझ रहा होता है तो उसकी इच्छाओं में और आपकी इच्छाओं में कितना फर्क होता है?आप दुनिया की चीजों को पाने की सोच रहे होते हैं और वह सिर्फ ज़िंदगी को पाने की सोच रहा होता है.कभी सोच कर देखा है कि आपके पास कितनी कीमती चीज है.किसीके पास करोडों रुपए ही क्यों न हों परंतु वह चाहे कि वह बचपन खरीद ले या फिर जिंदगी का 1 मिनट भी खरीद ले.ऐसा हो सकता है क्या?शायद नहीं!हजारों आईफोन-एक्स भी आपको 1 मिनट की और जिंदगी नहीं दे सकते.अगर हम मान लें कि एक इंसान 60 वर्ष तक जिएगा,साधारण वर्ष में 365 दिन और लीप ईयर में 366 दिन.सभी को 60 वर्ष के हिसाब से मल्टिप्लाई करें तो 21 हज़ार 915 दिन होते हैं. जिनमें से अगर 8 घंटे रोज इंसान के सोने के लिए हटा दें,खाने-पीने और बाथरूम के 2 घंटे हटा दें, मार्केट जाने और काम करने के 8 से 9 घंटे हटा दें,3 घंटे एंटरटेनमेंट के हटा दें.तो अब इंसान के पास 1 दिन में खुद के लिए सिर्फ 2 घंटे बचते हैं.अब इन दो घंटों को साल में देखें तो 730 घंटे और 60 साल में 43 हज़ार 800 घंटे.अगर 2 घंटे के हिसाब से 60 साल के लिए 30 घंटे लीप ईयर के और जोड़ दें तो कुल 43 हज़ार 830 घंटे हुए.यानि 1826.25 दिन.यह हुए लगभग 5 साल जो इंसान के पूरी तरह से उसके ही हैं.फिर भी ताज्जुब की बात तो यह है कि अपनी जिंदगी की शुरुआत के 5 साल तो वह चीजों को जानने और सीखने में ही लगा देता है.कुल मिलाकर इंसान का सबकुछ है और कुछभी नहीं है.फिर भी इंसान यह मेरा है,यह मैंने किया है,इस पर मेरा हक है.सिर्फ तेरा-मेरा यही सब करते हुए रह जाता है.किस बात के लिए जबकि वह इंसान यह नहीं जानता कि जिस वक्त वह धरती पर पैदा हुआ था उससे पहले वह क्या था? दुनिया में आकर ही उसने सबकुछ सीखा.किसी को अपने पैसे का गुरूर आ गया,किसी को अपनी खूबसूरती का,किसी को अपने नाम का,तो किसी को अपने शरीर का.पर कोई भी आज तक जिंदगी की 1 मिनट भी नहीं खरीद पाया.विश्व प्रसिद्ध डांसर माइकल जैक्सन 150 साल जीना चाहता था,किसी सेे साथ हाथ मिलाने से पहले दस्ताने पहनता था.लोगों के बीच में जाने से पहले मुंह पर मास्क लगाता था.अपनी देखरेख करने के लिए उसने अपने घर पर 12 डॉक्टर्स नियुक्त किए हुए थे जो उसके सर के बाल से लेकर पांव के नाखून तक की जांच प्रतिदिन किया करते थे.उसका खाना लैबोरेट्री में चेक होने के बाद उसे खिलाया जाता था.स्वयं को व्यायाम करवाने के लिए उसने 15 लोगों को रखा हुआ था.माइकल जैकसन अश्वेत था,उसने 1987 में प्लास्टिक सर्जरी करवाकर
अपनी त्वचा को गोरा बनवा लिया था.अपने काले मां-बाप और काले दोस्तों को भी छोड़ दिया गोरा होने के बाद उसने गोरे मां-बाप को किराए पर लिया और
अपने दोस्त भी गोरे बनाए शादी भी गोरी औरतों के साथ की.नवम्बर 15 को माइकल ने अपनी नर्स डेबी रो
से विवाह किया,जिसने प्रिंस माइकल जैक्सन जूनियर (1997) तथा पेरिस माइकल केथरीन (3 अप्रेल 1998) को जन्म दिया.वो डेढ़ सौ साल तक जीने के लक्ष्य को लेकर चल रहा था.हमेशा ऑक्सीजन वाले बेड पर सोता था उसने अपने लिए अंगदान करने वाले
डोनर भी तैयार कर रखे थे.जिन्हें वह खर्चा देता था,
ताकि समय आने पर उसे किडनी, फेफड़े, आंखें
या किसी भी शरीर के अन्य अंग की जरूरत
पड़ने पर वह आकर दे दें.उसको लगता था वह पैसे और अपनी शोहरत की बदौलत मौत को भी चकमा दे सकता है,लेकिन वह गलत साबित हुआ.25 जून 2009 को उसके दिल की धड़कन रुकने लगी,उसके घर पर 12 डॉक्टर की मौजूदगी में हालत काबू में नहीं आए,सारे शहर के डाक्टर उसके घर पर जमा हो गए
वह भी उसे नहीं बचा पाए.उसने 25 साल तक डॉक्टर की सलाह के विपरीत, कुछ नहीं खाया.अंत समय में उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी.50 साल तक आते-आते वह पतन के करीब ही पहुंच गया था.और 25 जून 2009 को वह इस दुनिया से चला गया.जिसने अपने लिए डेढ़ सौ साल जीने का इंतजाम कर रखा था.उसका इंतजाम धरा का धरा रह गया.जब उसकी बॉडी का पोस्टमार्टम हुआ तो डॉक्टर ने बताया कि
उसका शरीर हड्डियों का ढांचा बन चुका था.उसका सिर गंजा था उसकी पसलियां कंधे हड्डियां टूट चुके थे.उसके शरीर पर अनगिनत सुई के निशान थे.प्लास्टिक सर्जरी के कारण होने वाले दर्द से छुटकारा पाने के लिए एंटीबायोटिक वाले दर्जनों इंजेक्शन उसे दिन में लेने पड़ते थे.माइकल जैक्सन की अंतिम यात्रा को 2.5 अरब लोगो ने लाइव देखा था.यह अब तक की सबसे ज़्यादा देखे जाने वाली लाइव ब्रॉडकास्ट हैं.माइकल जैक्सन की मृत्यु के दिन यानि 25 जून 2009 को 3:15 PM पर Wikipedia,Twitter और AOL’s instant messenger यह सभी क्रैश हो गए थे.उसकी मौत की खबर का पता चलता ही गूगल पर 8 लाख लोगों ने माइकल जैकसन को सर्च किया.ज्यादा सर्च होने के कारण गूगल पर सबसे बड़ा ट्रैफिक जाम हुआ था! और ढाई घंटे तक गूगल काम नहीं कर पाया.मौत को चकमा देने की सोचने वाले हमेशा मौत से चकमा खा ही जाते हैं.क्या आपको याद है कि
दो दिन पहले किसी की शादी पर आपने
क्या खाया था?हमारी जरूरत कितनी हैं ?और
हम पाना कितना चाहते हैं?इस बारे में सोचिए.क्या हमारी अगली पीढ़ी कमाने में सक्षम नहीं है जो,
हम उनके लिए ज्यादा से ज्यादा सेविंग कर देना चाहते हैं?क्या हम सप्ताह में डेढ़ दिन अपने मित्रों,अपने परिवार और अपने लिए खर्च नहीं कर सकते?क्या आप अपनी मासिक आय का 5% अपने आनंद के लिए,
अपनी ख़ुशी के लिए खर्च करते हैं?हम कमाने के साथ साथ आनंद भी क्यों नहीं प्राप्त कर सकते?इससे पहले कि आप sleep disorder का शिकार हो जाएँ,
इससे पहले कि cholesterol आपके heart को ब्लॉक कर दे आनंद प्राप्ति के लिए समय निकालिए.हम किसी प्रॉपर्टी के मालिक नहीं होते.सिर्फ कुछ कागजातों, कुछ दस्तावेजों पर अस्थाई रूप से हमारा नाम लिखा होता है.किसी के बारे में उसके शानदार कपड़े और बढ़िया कार देखकर राय कायम मत कीजिए.धनवान होना गलत नहीं है वल्कि सिर्फ धनवान होना गलत है.आइए ज़िंदगी को पकड़ें इससे पहले कि जिंदगी हमें पकड़ ले.अगर एक इंसान को यह पता चले कि आज उसका इस दुनिया में आखरी दिन है और उसे उसकी सबसे कीमती चीज मांगने को कहा जाए तो कितने लोग होंगे जो अपने बिजनेस का प्रॉफिट,नई गाड़ी,जेवर या आलीशान बंगला मांगेंगे?शायद एक परसेंट भी नहीं. लेकिन 99.9% सिर्फ यही कहेंगे कि मुझे कुछ नहीं चाहिए मेरा सब कुछ ले लो बस मुझे जिंदगी वापस दे दो.क्या यही माईकल जैकसन ने नहीं किया?मृत्यु के निकट इंसान को यह लगने लगता है कि जिंदगी स्वर्ग से बढ़कर है क्योंकि उस वक्त बिजनेस का प्रॉफिट,नाम और शोहरत सब इस ज़िन्दगी के आगे फीके लगते हैं.उसे यह लगने लगता है कि जो कुछ भी है वह सबकुछ इसी जिंदगी से है इसके बाद जो है उसे वह महसूस ही नहीं कर सकता उसे वह जान ही नहीं सकता कि जिंदगी के बाद क्या है? तो क्या फायदा उन सब चीजों का.मैं मानता हूं यूनिवर्स में कहीं स्वर्ग होता होगा,मैं मानता हूं शायद नर्क भी होता होगा.लेकिन जिसको आप महसूस ही नहीं कर पाएं तो ऐसे स्वर्ग का क्या मतलब.
आपको चीजें क्यों समझ आती हैं क्योंकि आपने चीजों को सीखा होता है यदि आप मेरी बात समझ सकते हो तो भी यह आपको मैंने नहीं सिखाया.लेकिन अगर कोई इंसान जिसे हिंदी या अंग्रेजी नहीं आती हो वह मेरे लेख को देख तो सकता है लेकिन मैं क्या लिख रहा हूं या क्या समझाना चाहता हूं उसे समझ नहीं आ सकता जब तक कि वह हिंदी ना सीखे.आप जो सीखते हैं वह जानकारी दिमाग के अलग-अलग भागों में सुरक्षित होती है.जैसे कि frontal lobe,temporal lobe तथा perietal lobe,जहां से आपका intelligence,reasoning, memory,emotions,behaviour,personality behaviour,language,speech तथा behaviour ये सब ऑपरेट होता है.आपका मष्तिष्क ही है जो हर चीज का आपको एहसास करा रहा है और आपके मष्तिष्क तक मैसेज पहुंचाने का काम करते हैं न्यूरॉन्स जो कि एक electrically excitable cell है.वह इलेक्ट्रिकल और केमिकल सिगनल्स के माध्यम से इंफॉर्मेशन को process और transmit कर रहे हैं. और दो न्यूरॉन के बीच में है synapse,जो कि आपके न्यूरॉन्स के बीच में कनेक्शन का काम कर रही है.बहुत से लोग इस बात को नहीं जानते होंगे कि वह जो कुछ भी देखते हैं वह सब उल्टा देखते हैं.यानि कि हमारी आंख की ratina पर जो image बनती है वह उल्टी बनती है.लेकिन हमारा brain ही है जो उसे सीधा कर देता है.अगर कोई इंसान कोमा में चला जाता है तो इसका मतलब उसका brain जिंदा है फिर भी वह आस-पास की चीज़ों या बदलावों को महसूस नहीं कर सकता जब तक कि उसके brain तक proper information transmission नहीं हो रहा हो.आप कोमा में गए इंसान से कितना भी कहना कि आप उसे करोड़पति बना दोगे,वह सब कुछ दे दोगे जो एक इंसान पाना चाहता है.लेकिन उसके लिए किसी भी चीज का कोई मतलब ही नहीं क्योंकि उसका दिमाग किसी चीज को समझने के लिए सक्षम ही नहीं.तो क्या हम इस बात को मान लें कि जो कुछ है वो सब इसी दुनिया में है.फिलहाल के लिए इसका जवाब है हां.क्योंकि हम बिना ब्रेन के इस ब्रह्मांड की किसी भी चीज को access नहीं कर सकते.इंसान के मष्तिष्क में 100 billion neurons होते हैं,लेकिन आज तक मानव जाति सिर्फ 15% को ही access कर पायी है.हम से कई गुना तेज तो डॉल्फिन निकली जिसने अपने दिमाग की क्षमता को 20% तक इस्तेमाल करती है.अगर 500 साल पहले के इंसान को लाकर आजकी दुनिया की सभी चीजें सिखा दी जाएं तो हममें और उसमें क्या फर्क होगा?शास्त्र कहते हैं कि आत्मा अजर अमर है.सभी धर्मों में आत्मा को पवित्र माना गया है क्योंकि शरीर छोड़कर जाने वाली आत्मा के साथ दिमाग नहीं होता है.दिमाग एक फिजिकल चीज है और आत्मा एक ऊर्जा.दोनों साथ-साथ कैसे हो सकते हैं अगर आत्मा के साथ दिमाग जाए तो एक इंसान तो सारे ब्रह्मांड में हो सकता है.क्योंकि विज्ञान के अनुसार ऊर्जा को नष्ट नहीं किया जा सकता इसे सिर्फ एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तित किया जा सकता है.जैसे कि physics में एक momentum का सिद्धांत है,अगर एक छोटी कार ट्रक से टकरा जाती है तो ट्रक के momentum में थोड़ा सा बदलाव आएगा.टक्कर से de-acceleration पैदा हुआ और ट्रक का momentum टकराने के दौरान कार में ट्रांसफर हो गया.तो ऊर्जा नष्ट नहीं हुई बस transfer हो गई.आत्मा एक एनर्जी है जो कि अजर अमर है यही हमने सीखा है न?ये वह चीज है जो एक इंसान की अपनी है जिसका इंसान गुरुर भी नहीं करता,क्योंकि उस इंसान का उस पर कोई कंट्रोल ही नहीं होता.अपनी आत्मा को कोई कंट्रोल कर सकता है क्या?दिमाग जो कि फिजिकल चीज है इंसान को इस दुनिया से मिला है.उसी का इस्तेमाल करके वह सारे काम करता है हम सभी उन चीजों की तरफ भागते हैं जो हमें मिलती हैं या कभी-कभी नहीं मिलतीं.जिस दिन आप लोगों से लड़ना शुरू कर देते हैं आपके जीतने की संभावना उतनी ही कम होने लगती है.अब बात यह आती है कि आखिर लड़ना किससे है?अपने आप से!अपनी फीलिंग से! अपने अंदर की उस नेगेटिव एनर्जी से जो आपको बार-बार भूतकाल के हालातों से और भविष्य की मुसीबतों से डराती है.एक बार आप ऐसा कर लेते हैं,तो कोई नहीं जो आपको हरा सके,अगर आप अपने आप से जीत गए.फिर चाहे एक क्या,एक लाख लोग भी आपको हरना चाहें तो भी नहीं हरा सकते.अपने अंदर की हिम्मत को फिर से जगाओ जो सोई पड़ी है.उठो,देखो अपने चारों तरफ! वो हर चीज आपका इंतजार कर रही है जिसे आप पाना चाहते हो.
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