अपने आर्थिक लक्ष्य को पहचानें

समय,इस समस्त ब्रह्मांड के अस्तित्व की सबसे विशिष्ट इकाई,क्या कारण है आजकल हर व्यक्ति के पास समय की कमी हो गयी है?क्या कोई है जो ट्रैफिक में फंसकर ये कहे कि निकल जाने दो सबको मैं आराम से निकल जाऊँगा,क्या पुराने समय में लोगों के पास 24 की जगह 48 घंटे थे,वे अपने सभी चाहने वालों को भरपूर समय देते थे,लोगों के पास घड़ी ही नहीं थी जिस पर होती भी थी वही जल्दबाज़ी में रहता था.जो चीज़ हमारे पास होती है अक्सर उसी की कमी हमें महसूस होती है,पुराने समय मैं लोगों पर घड़ी नहीं थी तो अंदाज़े से ही चलते थे और बहुत वक़्त था उनके पास.आज हर कोई समय से बंधा है जरा सा भी लेट न हो जाये,आखिर ये जल्दबाज़ी उन्हें ले कहाँ जा रही है,1 आदमी जो मुझे 4 साल पहले 6 बजे रोज बस मैं मिलता था वो तो आज भी रोज़ बस मैं 6 बजे ही मिलता है,अरे हाँ वो टीचर है न इसीलिए.आखिर इंसान समय से जीत नहीं सकता बच्चों के पास और बुजुर्गों के पास इतना समय कैसे होता है क्योंकि उनकी उम्र नियंत्रण किये हुए है उनकी जरूरतों पर,बच्चा वर्तमान में जी रहा है इसलिए खुश है,बुजुर्ग अतीत में जी रहा है इसलिए थोड़ा दुखी है उन पुरानी यादों को लेकर.कि काश वो समय लौट आये.लेकिन युवा क्यों परेशान है क्योंकि वो न पास्ट में जी रहा है न प्रेजेंट में,उसे तो भविष्य की चिंता सताए जा रही है कि कल को उसकी शादी होगी,बीबी बच्चे होंगे,नोकरी कैसे मिलेगी,इसी उधेड़बुन में वो अपना वर्तमान भूलकर सिर्फ भविष्य को सोच सोचकर परेशान है.यदि कुदरत ने मनुष्य की आयु 100 वर्ष तय की है तो इसमें आधी जिंदगी रात्रि में चली जाती है बची आधी से भी आधी बचपन और बुढ़ापे में चली जाती है और बाकी बचे 25 वर्षों में मनुष्य को रोग और वियोग के अनेक दुख झेलने पड़ते हैं और नोकरी चाकरी करनी पड़ती है,इसलिए हम कह सकते हैं कि जलतरंग के समान चंचल इस जीवन में इंसान को जरा भी सुख नहीं है.समय अनमोल है,क्योंकि वास्तव में समय ही संसार की एक अनोखी ऐसी चीज़ है जो सीमित है,अगर आप दौलत गँवा दें तो दुबारा कमा सकते हैं,घर गँवा दें तो नया बना सकते हैं लेकिन समय गँवा दिया तो आपको वही समय दुबारा नहीं मिल सकता.अगर जीवन में कुछ भी अनोखा करना है या बनना है तो ये जरूरी है कि हम समय का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना सीख जाएं,ताकि इस धरती पर अपने उसी सीमित समय में जो हासिल करना चाहते हैं जैसे दौलत,शोहरत सुख या सफलता उसे प्राप्त कर सकें.कुदरत ने किसी को सुंदरता ज्यादा दी किसी को कम,किसी को दौलत ज्यादा दी किसी को कम लेकिन समय सबको बराबर दिया,असल में यही वो दौलत है जिसे आप बैंक में भले जमा नहीं कर सकते लेकिन इसकी कीमत बहुत है.ये बात भी सही है कि समय का गुज़रना किसी के हाथ में नहीं लेकिन इसका प्रबंधन जरूर आपके हाथ में है.कैलेंडर से धोखा न खाएं,साल भर में केवल उतने ही दिन होते हैं जिनका आप उपयोग करते हैं एक इंसान साल भर में केवल एक सप्ताह का मूल्य प्राप्त करता है जबकि दूसरा व्यक्ति एक सप्ताह में ही पूरे साल का मूल्य प्राप्त करता है,फर्क उसके समय के प्रबंधन का ही है.समय आपके जीवन का सिक्का है,यह आपके पास मौजूद ऐसा सिक्का है जिसे सिर्फ आप ही तय करते हो कि इसे कैसे खर्च करना है,वरना और लोग इसे खर्च कर ही रहे हैं.कितनी अजीब बात है आधुनिक मनुष्य उन चीजों को खरीदने लायक पैसा कमाने में जुटा रहता है जिनका आनंद वो व्यस्तता के कारण नहीं ले सकता.समय ही धन है ऐसा कहा जाता है लेकिन समय तो धन है ही नहीं जो इंसान बेरोजगार बैठा है वो अपने 4 घंटे दे दे तो क्या कोई उसे उन घंटो का बिना काम के पैसा दे देगा,समय सिर्फ संभावित धन है अगर कोई इसका सदुपयोग करे तो धन कमा सकता है और दुरुपयोग करे तो धन कमाने की संभावना को गँवा देता है.समय के उपयोग के सिद्धांतों में से एक है आर्थिक लक्ष्य बनाना.लक्ष्य से आपकी योजना को आकार मिलता है,योजना से आपके कार्य तय होते हैं,कार्यों से परिणाम हासिल होते हैं और परिणाम से आपको सफलता मिलती है और यह सब लक्ष्य से ही शुरू होता है.अगर किसी का कोई लक्ष्य नहीं तो सफलता भी उसकी संदिग्ध है,अगर आप यही नहीं जानते कि आप कहाँ पहुँचना चाहते हैं तो आप कहीं नहीं पहुँच सकते,जैसे किसी यात्रा पर जाने से पहले आपको यह तो पता होता ही है कि जाना कहाँ है उसी तरह आपको यह भी पता होना चाहिए कि आर्थिक क्षेत्र में आप कहाँ जाना चाहते हैं तभी आप वहां पहुँच सकते हैं,अगर आपकी कोई मंजिल ही नहीं तो योजना केसी?और उस दिशा में चलना कैसा?लक्ष्य दो तरह के होते हैं:सामान्य और निश्चित.
सामान्य लक्ष्य जैसे:मैं और ज्यादा मेहनत करूँगा,मैं अपनी कार्यकुशलता बढ़ाऊंगा,मैं अपनी योग्यता में वृद्धि करूँगा.दूसरा निश्चित लक्ष्य जैसे:मैं हर दिन 8 घंटे काम करूंगा या हर महीने 30 हज़ार रुपये कमाऊंगा या मैं सॉफ्टवेयर डिजाइनिंग का कोर्स करूँगा,यानी निश्चित या स्पष्ट लक्ष्य वो हैं जिन्हें नापा या जांचा जा सके.लक्ष्य जितना स्पष्ट होता है,इंसान के सफल होने की संभावना को उतना ही बड़ा देता है.उदाहरण के तौर पर एक सेल्समेन की पत्नी लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रही,हैरानी की बात ये थी कि उस साल सेल्समेन ने अपने सामान्य औसत से लगभग दोगुना सामान बेचा,जब उस से इसकी वजह पूछी गयी तो उसने कहा कि अस्पताल का बिल उसके सामने रखा था और वह सटीकता से जानता था कि बिल चुकाने के लिए उसे कितना सामान बेचना होगा.इस से ये तो तय है कि अगर कोई इंसान ठान ले तो वह अपने आर्थिक लक्ष्य को हासिल कर सकता है,बशर्ते उसके सामने वजह और स्पष्ट लक्ष्य हो.आर्थिक लक्ष्य के लिए पहले इंसान को रीयलिस्टिक यानी यथार्थवादी ढंग से यह तय करना है कि वो हर महीने कितना कमाना चाहता है और फिर कैलकुलेशन करनी है कि उसे कैसे सही तरीकों से कमाया जा सकता है.उदाहरण के तौर पर अगर कोई दुकानदार 40हज़ार रुपये महीने कमाना चाहता है और उसे एक प्रोडक्ट बेचने पर 50 रुपये लाभ होता है तो गणित आसान है उसे हर महीने 800 प्रोडक्ट्स बेचने हैं,यदि वह महीने में 25दिन काम करता है तो उसे हर दिन 32 प्रोडक्ट्स बेचने होंगे,औसत का यह आंकड़ा जानने के बाद वह अपने काम को टाल नहीं सकता,वह मूड न होने या बोर होने का बहाना नहीं बना सकता क्योंकि ये उसका खुदका काम है,खुदकी कैलकुलेशन और टारगेट भी उसने ही तय किया.साथ ही कैलकुलेशन का यह गणित उसे ये बता रहा है कि अगर लक्ष्य प्राप्त करना है तो उसे हर दिन इतना काम करना पड़ेगा,न कम न ज्यादा.इसलिए लक्ष्य की स्पष्टता आपकी प्रगति के बारे में जानकारी देती है कि ये संतोषजनक है या नहीं,अब अगर दुकानदार शाम तक 32प्रोडक्ट बेच लेता है तो उसे पता चल जाएगा कि उसका आजका लक्ष्य पूरा हो गया,लेकिन अगर नहीं बेच पाता तो उसे एहसास हो जाएगा कि महीने के लक्ष्य तक पहुचने के लिए उसे अगले दिन 32 से भी ज्यादा प्रोडक्ट्स बेचने होंगे.हमें लगता है कि हम बहुत मेहनत कर रहे हैं उस से ज्यादा नहीं कर सकते लेकिन याद रखें मेहनत का मतलब हमेशा सफलता नहीं होता,सफलता के लिए सही दिशा में मेहनत का होना जरूरी है और एनालिसिस यानी विश्लेषण से हमें ये पता चलता है कि हम सही दिशा में मेहनत कर रहे हैं या नहीं.इसलिए महत्वपूर्ण ये नहीं कि आपका इनपुट क्या है वल्कि ये है कि आपका आउटपुट क्या है.संसार हर उस व्यक्ति को जगह देने के लिए एक तरफ हट जाता है जिसे पता होता है कि वो कहाँ जा रहा है.

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