इंसानियत कहीं-कहीं जन्म लेती है:Motivational thoughts by Kuldeep Singh

मेरे पास एक मैसेज आया,कि आज मैं अपने ही घर से बेघर हूँ मेरा गुनाह यही है कि मैं बूढ़ा और लाचार हूँ,मेरे अपनों ने ही मुझे मेरे घर से बेघर कर दिया,जिस दौलत को मैंने सारी जिंदगी अपनों की खुशियों के लिए कमाया आज उन्हीं ने मुझे मेरे ही घर से बेघर कर दिया,मेरे अपने ही घर से मैं आज बेघर होकर दिल्ली में अपने दोस्त के यहाँ उसकी दया पर रह रहा हूँ.क्या इंसान का बूढ़ा होना गुनाह है,क्या बूढ़ा इंसान मॉडर्न नहीं है इसलिए,या फिर किसी पर आश्रित है इसलिए उसके साथ हमारा व्यवहार अन्य लोगों की तुलना में अलग है,अगर देखेंगे तो हमारी उम्र के लोग हमें क्या सिखाएंगे पार्टी करना,घूमना और मस्ती करना,हाँ इस से समय तो कट जाता है पर जिंदगी नहीं क्योंकि जिंदगी जीने के लिए अनुभवों का होना बहुत आवश्यक है और यही वो विरासत है जो हमें मिलती है अपने से बड़ों के जिंदगी भर के अनुभव से.जब मनुष्य इस श्रष्टि में आता है तो वो कई तरह के कानूनों के दायरे में आता है जैसे देश के संविधान का कानून,मानवाधिकार का कानून,कुदरत का कानून,और अंत में मानव-जीव होने पर मानवता का कानून.इन क़ानूनों के
सहायतार्थ,अथवा अनुसरण करते हुए जो कुछ भी मानव,और मानव-समाज में श्रेष्ठ तरीके से चल रहा है वही जीवन है।जो श्रेष्ठ तरीके से नहीं चल पा रहा,रुक गया है,उसे मृत्यु ही समझा जाता है.उदाहरण के तौर पर,करोड़ों रुपये खर्च कर बनाया गया हवाई जहाज अगर हवा में उड़ कर सवारियाँ ढोने का काम ना कर पाए और ज़मीन पर ही खड़ा रहे तो उसका निर्माण व्यर्थ हो जाएगा। बहता हुआ पानी ही जीवन है,रुका हुआ पानी भी खराब होकर वातावरण को नुकसान पहुंचाता है.
खुद कुदरत,करोड़ों बरसों से सही तरीके से दिन और रात का चक्र चलाते हुए छ ऋतुओं के चक्र की सहायता से पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों की अनेकों प्रजातियाँ बनाकर जो अद्भुत हलचल बनाए हुए है,इन सब को देखकर कहा जा सकता है कि पृथ्वी जीवित है.अगर पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमना बंद कर दे,सूर्य अपनी रोशनी बंद कर दे,पानी समाप्त हो जाए,हवा में आक्सीजन ही ना रहे,तो धरती पर क्या बचेगा?सिर्फ मृत्यु अथार्त सब कुछ शून्य.यानी कुदरत ने अपना कार्य बाखूबी निपुण तरीके से चलाया हुआ है,इसीलिए करोड़ों बरसों से शानदार अद्भुत कायनात की हलचल अभी भी कायम है.इस पृथ्वी पर,कुदरत की कायनात में अगर सबसे अद्भुत कोई रचना है तो वो है,मनुष्य-जीव.क्यूंकि मनुष्य-जीव को कुदरत ने अपना ही रूप बना कर संसार में उतारा है.करोड़ों बरसों से अनगिनत नए नए प्राणी,तौर तरीके बना कर पूर्ण कायनात का अद्भुत नज़ारा पेश किए हुए हैं.कुदरत ने तो कायनात को अद्भुत बना दिया और अब कुदरत इस खूबसूरत-कायनात की हलचल को देखकर आनंदित हो रही है,कि-हाँ मैंने महान काम किए हैं.अब मनुष्य की बारी है.प्रत्येक मनुष्य अपने किस्म का एक मात्र व्यक्तित्व है,ऐसा व्यक्तित्व ना पहले कभी जन्मा है,और ना कभी जन्मेगा.ये मनुष्य के जीने का आधार बन जाता है कि वह इस अद्भुत कायनात में अपने एक मात्र व्यक्तित्व होने की विशेषता को साबित करे.क्यूंकि मनुष्य कुदरत की तरह से ही बहु-प्रतिभाशाली प्राणी है,तो इस  मनुष्य-जीव को संसार में व्याप्त अनगिनत कारकों पर काम करते हुए अपने व्यक्तित्वानुसार बहुमूल्य परिणाम निकाल कर साबित करना होता है कि कुदरत ने उसे किस किस्म का विशेष-व्यक्तित्व बना के संसार में उतारा था.जैसे कुत्ता बिल्ली आदि जानवरों को अपने प्रति कुछ भी साबित नहीं करना
पड़ता.कुत्ता जन्म भी कुत्ते के रूप में लेगा और मरेगा भी कुत्ते के रूप में लेकिन मनुष्य के लिए कुदरत ने विशेष एक खेल रचा है.मनुष्य शून्य के रूप में जन्म लेता है.उसको जन्म देने वाले माँ-बाप उसका कोई नाम रखते हैं,ताकि उसकी बाहरी पहचान बन सके.बाहरी पहचान में बेशक नाम की आवश्यकता है,लेकिन उसका असली मोल उसके द्वारा बाहरी संसार में अनेकों कारकों पर किए गए प्रयासों और उन प्रयासों से मिले परिणामों की गुणवत्ता पर निर्भर करता है कि वह मनुष्य  अपने किस सामर्थ्य को साबित कर सका.जानवरों के परिवार को झुंड का नाम दिया जाता है,जब कि मनुष्य के परिवार को संस्था का दर्जा दिया गया है,क्यूंकि परिवार रूपी संस्था में ही मनुष्य को श्रेष्ठ रूप में विकसित होने का कार्य किया जाता है.इस परिवार रूपी संस्था में जन्मे हर मनुष्य पर अनेकों प्रयोग किए जाते हैं जब इस परिवार का प्रत्येक सदस्य श्रेष्ठ-इंसान बना दिया जाता है तो ये परिवार बहुमूल्य संस्था बन जाता है.कुदरत द्वारा वानर जाति के जींस से मनुष्य-जीव को विकसित करने का इरादा विकास की प्रक्रिया को निरंतर आगे बढ़ाने का ही था.शायद इसीलिए स्टोन ऐज से खुद को विकसित करता हुआ मनुष्य संसार का कारवां 21वीं सदी में चाँद को पार कर कर मंगल गृह पर भी अपनी प्रतिभा को सत्यापित कर चुका है.यानी मनुष्य का दूसरा अर्थ है उसके भीतरी और बाहरी दोनों तरफ में संभावित,जन्म से मृत्यु तक केवल विकास का कभी भी ना रुकने वाला सिलसिला.
लेखक या वक्ता समाज के सच्चे आईने को दिखाकर एक समृद्ध समाज के निर्माण की उपेक्षा रखते हैं,शायद हमारा लेख उस समाज में सकारात्मक बदलाव ला सके,जिसका इंतज़ार लाखों लोग करते हैं.
दिल को छू लेने वाली कुछ पंक्तियों पर गौर कीजियेगा:
तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में,
चिड़िया बना रही थी घोंसला रोशनदान में.
पल भर में आती पल भर में जाती थी वो,
छोटे छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो.
बना रही थी वो अपना घर एक न्यारा,
उसका न कोई तिनका था ना ईंट उसकी कोई गारा.
कुछ दिन बाद मौसम बदला, हवा के झोंके आने लगे.
नन्हे से दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे.
पाल रही थी चिड़िया उन्हे.
पंख निकल रहे थे दोनों के पैरों पर करती थी खड़ा उन्हे.
देखता था मैं हर रोज उन्हें जज्बात मेरे उनसे कुछ जुड़ गए.
पंख निकलने पर दोनों बच्चे मां को छोड़ अकेला उड़ गए.
चिड़िया से पूछा मैंने,तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए,तू तो थी मां उनकी फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए.
चिड़िया बोली,परिन्दे और इंसान के बच्चे में यही तो फर्क है इंसान का बच्चा पैदा होते ही अपना हक जमाता है.
न मिलने पर वो मां बाप को कोर्ट कचहरी तक भी ले जाता है.
मैंने बच्चों को जन्म दिया,पर करता कोई मुझे याद नहीं.
मेरे बच्चे क्यों रहेंगे साथ मेरे क्योंकि मेरी कोई जायदाद नही.
इंसान जब बूढ़ा हो जाता है तो उसे दुनिया नकारने लगती है,जब वो जवान था उसकी हर जगह इज्जत थी,दोस्त थे,बहु-बेटे सब उसके साथ थे लेकिन आज जब वो बूढ़ा हो गया तो सारे रिश्ते उसके न जाने कहाँ चले गए,बेटा अपनी पत्नी का हो गया,रिश्तेदार जो कभी पल पल की खबर रखते थे आज गम हो गए.पेड़ जबतक हरा होता है हर कोई फल तोड़ता है,छांव लेता है और सूख जाने पर पूरा पेड़ ही हटा दिया जाता है.याद भूल गए साहब जब तुम 2-3 साल के थे,और माँ की उंगली पकड़कर तुमने उठना और पिता का हाथ पकड़कर चलना सीखा था,जब तुम 1 साल के भी नहीं थे और इतनी जोर से रोते थे कि बाकी के लोग बोलते थे किसका बच्चा है इसे दूर रखो हमसे,नाक में दम करके रख दिया है इसने.आज जब तुम बड़े हो गए और माँ बाप बूढे हो गए तो सब भूल गए,पर कुदरत तो उस से भी बड़ी कलाकार है साहब,वही दिन तुम्हे भी दिखा देती है जो तुम आज उन्हें दिखाते हो.पेड़ के नीचे रखी भगवान की टूटी मूर्ति को देख कर समझ आया कि परिस्थिति चाहे कैसी भी हो पर कभी ख़ुद को टूटने नही देना वर्ना ये दुनिया जब टूटने पर भगवान को घर से निकाल सकती है तो फिर हम क्या चीज़ हें.क्या जीवन की सच्चाई समझने के लिए बूढ़ा होना जरूरी है,हम इसे अपनी जवानी में ही क्यों न समझ लें कि जिंदगी बहुत खूबसूरत है सभी की कद्र करके,मिल जुलकर और चेहरे पर मुस्कान रखकर जिया जाए,जहां हंसी खुशी का माहौल है वहां भले से ढेर सारा पैसा न हो लेकिन सब चैन से रह सकते हैं लेकिन जहां क्लेश का माहौल हो वहां चैन से आपको साही पकवान भी जहर समान लगेंगे.आज किसी को सुधार भी दो तो क्या मिल जाएगा बस आत्म संतुष्टि हें न.परंतु असली खेल तो स्वयं के समझने का है,5मेगा पिक्सेल कैमरे से दुनिया उतनी साफ नहीं दिखेगी जितनी 23 मेगापिक्सेल कैमरे से,दुनिया वही है जनाब बस देखने वाले के नज़रिए से अलग अलग दिखती है.क्या खूब कहा है किसी ने,इन्सान तो हर घर में पैदा होते हैं,बस इंसानियत कहीं-कहीं जन्म लेती है.

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