इंसान के पाँच आंतरिक रत्न
मुसीबत में ज्यादातर इंसान अपना धैर्य खो बैठते हैं जिसकी वजह से उनकी जिंदगी में कुछ न कुछ गलत कदम उठने लगते हैं और दोष किस्मत के ऊपर आ जाता है,नार्मल इंसान ज्यादा बेहतर फैसले लेता है वजाय मुसीबत में फंसे हुए इंसान के,लेकिन अगर मुसीबत में फंसे इंसान को कोई हिम्मत दे दे तो उसमे कहीं न कहीं उम्मीद जागने लगती है,और वो फिरसे अपनी आंतरिक शक्ति का उपयोग कर आगे बढ़ने लगता है.लेकिन शिकायत तो यही है कि होंसला तोड़ने वाले बहुत हें मगर देने वाले शायद न के बराबर.अगर न के बराबर भी हैं तो भी,हैं तो,ये भी काफी है.
दो तथ्य आपके व्यक्तित्व को परिभाषित करते हैं:
आपका धैर्य,जब आपके पास कुछ न हो,तब यही आपके लिए निर्णय लेने में सहायक बनता है.
दूसरा आपका व्यवहार,जब आपके पास सब कुछ हो.तब ये पता चलता है कि आप दूसरों को किस नज़रिए से देखते हैं.वर्तमान में जीना,यही जीवन का असल सत्य है.अगर आपके पास मन की शांति है,तो समझ लेना आपसे अधिक भाग्यशाली कोई नहीं है.क्योंकि हर इंसान अपने कर्मो के फल मैं मानसिक संतुष्टि ही तो तलाशता है.अगर धन दौलत कमाकर भी इंसान को मानसिक संतुष्टि नहीं है तो उसे वो सबकुक व्यर्थ ही लगेगा जो उसने कमाया.जिस प्रकार से इंसान के जीवन में रत्नों की कीमत होती है,उसी प्रकार इंसान के आंतरिक रत्न भी उसके पास होने बहुत आवश्यक हैं.
पहला रत्न है माफी,आपके लिए कोई कुछ भी कहे,आप उसकी बात को कभी अपने मन में न बिठाये, और ना ही उसके लिए कभी बदले या द्वेष की भावना मन में रखना,बल्कि उसे माफ़ कर देना.हो सकता है आप हर किसी की गलती को माफ नहीं कर सकते पर जिन्होंने छोटी सी गलती की हें उनको भी आप बड़ी गलती करने वाले से कैसे तौल सकते हैं और गलती बड़ी है या छोटी इसका निर्णय तो समय खुद ब खुद कर देता है.
दूसरा रत्न है:भूल जाना,अपने द्वारा दूसरों के प्रति किये गए उपकार को भूल जाना,कभी भी उस किए गए उपकार का लाभ मिलने की उम्मीद मन में न रखना।क्योंकि ये मानकर ही चलना चाहिए कि आपके द्वारा किये गए अच्छे कार्यों के परिणाम तुरंत नहीं मिलेंगे जैसी आपने इच्छा रखी थी लेकिन कोई ऐसी बैंक जरूर है जहां आपके हर कर्म का हिसाब रखा जा रहा है,समय आने पर वे वापस मिलेंगे जो अपने वहाँ जमा किया है.
तीसरा रत्न है:विश्वास,हमेशा धैर्य रखकरअपनी मेहनत और कुदरत के फैसले पर अटूट विश्वास रखना,यही सफलता का सबसे महत्वपूर्ण भाग है.चौथा रत्न है:detachment यानि वैराग्य,हमेशा ये याद रखना कि जब हमारा जन्म हुआ है तो निश्चित ही हमें एक दिन मरना भी है.इसलिए बिना किसी लोभ में लिप्त हुए जीवन का आनंद लेना,और अपनी वजह से किसी को नुकसान न पंहुचाना.
पाँचवा रत्न है प्रेम और दया;ये दोनों ही गुण जिसके अंदर हें वो कभी किसी के दिल से नहीं निकलता.इसे आप ऐसे देख सकते हैं कि आपको अपने लिए कैसा इंसान और व्यवहार चाहिए.प्रेम से आप किसी को भी अपना बना सकते हैं और दया से हर किसी का दिल जीत सकते हैं,आवश्यक है कि उनके साथ जरूर ये दोनों भाव रखें जिन्हें आज इनकी जरूरत है.
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