कोई अपने जीवन से संतुष्ट कैसे हो?

हर व्यक्ति अपने जीवन से ये उपेक्षा रखता है कि उसका किया हुआ हर कार्य सार्थक हो, जिसके लिए वह अपना प्रयास करता है, आप भी मैं भी। सभी इंसानों का जैविक ढाँचा समान होने के वावजूद भी सभी इंसानों द्वारा किये गए कार्य कुछ खास तरह से किये जाते हैं जिसे हम व्यक्तिगत बौद्धिक क्षमता के तौर पर देखते हैं।
कुदरत द्वारा व्यक्ति को दिया गया अनमोल उपहार जीवन तो है ही साथ ही इसे जीने का तरीका सिर्फ और सिर्फ व्यक्ति की बुद्धि पर निर्भर करता है। जिसमें व्यक्ति के कर्मों की भूमिका होने के साथ-साथ किस्मत की भी अपनी भूमिका है। आप अपने तर्कों से किस्मत को नकार तो देते हैं लेकिन स्वयं खुद उसे मानते हैं कि यही लिखा गया था।
क्या आपकी ज़िंदगी का हर पल पहले से लिखा गया है, यदि हाँ तो फिर कर्म से आप उसे कैसे बदल सकते हैं। यदि नहीं तो आप कर्म भी वही कर रहे हैं जो पहले से निर्धारित हैं। आप बुद्धिमान कैसे बन सकते हैं। क्या मैं भी आपको रोज़ 2 बादाम खाने से चमत्कारिक परिणाम के बारे में बता दूँ? हाँ वो शायद आसान काम है लेकिन अगर ऐसा होता तो शायद दुनिया से मूर्खता खत्म हो गयी होती और जो असल का तरीका है उसे आप सुनना तक नहीं चाहेंगे। इसलिए बस ये समझ लेना काफी है कि ये जीवन क्यों मिला है। इसका जवाब व्यक्ति कभी नहीं ढूंढ़ पाता, जबकि इसका सरल जवाब यही है कि जीवन तो बस जीने के लिए मिला है। लेकिन कितने लोग इसे जीते हैं? कोई किसी को मूर्ख बनाने में व्यस्त है, किसी को घर बनाने की चिंता है, किसी को बच्चों के भविष्य की पड़ी है, किसी को ये लगता है कि मेरा होना ही व्यर्थ है। किसी के अंदर सम्पूर्णता नहीं लगती।

रोज़ की तरह मैंने आज भी खाना खाया, पर रोज़ की तरह मैंने थोड़ा सा बदलाव किया, आज खाना तो खाया पर खाने के बाद पानी नहीं पिया, वेसे रोज़ खाने के बाद एक गिलास पानी पीता हूँ तब जाकर मुझे लगता है कि हाँ अब पेट पूरी तरह से भर गया, लेकिन आज मैंने पानी की जगह एक गिलास पानी की तरह दिखने वाली कोल्डड्रिंक स्पराइट पी ली, मात्रा वही थी दिखने में भी पानी जैसी ही होती है। लेकिन महसूस हो रहा था कि कुछ तो अधूरा सा है, मतलब रोज़ की तरह पूर्णता नहीं लग रही थी। सोचा और आधा गिलास स्पराइट पी लूँ फिर शायद फर्क लगे, आधा गिलास और पी ली। लेकिन फिर वही बात अब भी वही फील।


फिर मैंने आधा गिलास ही सही पर पानी पी लिया, बस अब लगा कि हाँ यही तो रह गया था।
यही हर किसी की ज़िंदगी में है अधूरापन सा, आप सबकुछ अपनी मर्ज़ी का कर लीजिए फिर भी आप महसूस करते हैं कुछ तो रह गया। आप किसी मॉल में या किसी कपड़े की शॉप पर गए, आपने बहुत सारे कलेक्शन देखे पर आपको कुछ पसंद नहीं आया, अचानक एक ऐसा पीस सामने आ गया कि आपके अंदर से यही निकला बस, यही तो मुझे चाहिए था। 


इन सब बातों का मतलब यही हुआ कि आप जो करते हैं वो बस करते ही रहते हैं पर आपको जिसकी तलाश थी वो जबतक नहीं सामने आता तब तक पूर्णता नहीं आती। ये सिर्फ एक इंसान के साथ नहीं है हर किसी के साथ घटित होने वाला परिदृश्य है। यदि आपकी प्यास हर रोज़ पानी से बुझ रही है तो सिर्फ पानी ही है जिससे आपकी प्यास पूर्णत बुझ सकती है, चाय,कोल्ड्रिंक या जूस पीने से आपका पेट अवश्य भर जाएगा लेकिन वो जो अधूरापन है उसका असली इलाज पानी ही है, यदि किसी की प्यास प्रेम से बुझती है तो प्रेम के अलावा और कुछ भी नहीं जो उसकी प्यास बुझा सके, यदि किसी की प्यास भक्ति से बुझती है तो सिर्फ परमेश्वर ही है जो उसके इस अधूरेपन को भर सकता है, यदि आपकी प्यास पैसे से है तो सिर्फ पैसा ही है जो आपकी प्यास खत्म कर सकता है न कि वो पैसे जो सिर्फ आपके सामने रखे हैं लेकिन आपके हैं  नहीं। 

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कुल मिलाकर अर्थ यही है कि हर ज़िन्दगी में अधूरापन है और हर किसी को सिर्फ वही चाहिए जिसकी उसे आदत है अब चाहे वो कुछ भी हो। ये कोई और तय कर ही नहीं सकता कि आपको संतुष्टि कब मिलती है आप ही उसे अपने हिसाब से तय करते हैं।

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