जीवन का अर्थ क्या है?
जब एक इंसान जो खुदको मैं शब्द से संबोधित करता है, असल में वो खुदको भी सही से नहीं जानता. क्या था वो जब उसने इस दुनिया में जन्म नहीं लिया था? जब वो इस दुनिया में आया तब उसने ये जाना कि ये दुनिया जैसी भी कोई चीज़ है. लेकिन ये न जान सका कि वो कौन है? एक इंसान अपनी पूरी जिंदगी के अंत तक अपने ही शरीर की आंतरिक जटिल प्रक्रियाओं को भी नहीं जान पाता. कितनी अजीब बात है कि इंसान अपने शरीर पर इतराता है जो प्रकृति द्वारा कुछ चुनिंदा वर्षों के लिए ही दिया गया है, ये भी तो इंसान का अपना नहीं है. मृत्यु के बाद इसका अस्तित्व तुरंत एक बॉडी के रूप में हो जाता है.
जीवन की शुरुआत से मृत्यु तक इंसान सिर्फ ख्वाहिशों को पूरी करने में लगा रहता है. इसी भूलवश कि उसने जो संचित किया है एक दिन वो उसका उपयोग करेगा. वहीं दूसरी ओर कुछ लोग स्वार्थ में फँसकर ये सोचते हैं कि मेरे लिए फलाँ कार्य पूर्ण हो जाये. मुझे वो सबकुछ मिल जाये जो मैंने सोचा है.
व्हाट्सअप पर मुझे एक व्यक्ति ने सवाल पूछा कि आप इस दुनिया मे क्या बदलाव देखना चाहते हो? मैंने यही कहा कि बस मेरी वजह से लोगों के जीवन में खुशियां और सफलता आये. ऐसा कोई दिन न आये जिस से मेरी वजह से किसी का दिल दुखे.
दुनिया बदलने तो हजारों लाखों लोग आए लेकिन सब दुनिया से समय के साथ चले गए. दुनिया हमेशा से चलती आयी और आज भी या कल भी चलती रहेगी. अगर हमारे हृदय में किसी के लिए दया,हमदर्दी अपनापन और इंसानियत की भावना आ जाये तो यही सबसे बड़ा बदलाव है. एक इंसान अपनी मृत्यु के करीब था और वो बार बार एक इच्छा जाहिर कर रहा था कि काश मुझे जीवन के 5 साल और मिल जाएं, उस से सवाल किया गया कि तुम ये क्यों चाहते हो? तो उसने बड़ी विनम्रता से कहा कि जब मैं 5 साल का था तो मैंने ये जाना कि ये दुनिया जैसी कोई चीज़ है जिसमे मेरा अस्तित्व है.
10 साल की उम्र में मैंने ये ठाना कि दुनिया में बहुत सारी बुराइयां हैं. मैं उन्हें खत्म कर सारी दुनिया को बदल दूँगा और मैं अपनी कोशिश में लग गया. जब मैं अलग-अलग देशों में गया तो मुझे वहां की भाषा और संस्कृति समझने में ही मेरी उम्र 30 साल तक पहुच गयी. परंतु मैं सिर्फ 3-4 देशों में ही जा सका और मुझे ये एहसास हुआ कि दुनिया तो बहुत बड़ी है. और इसे बदल पाना संभव नहीं.चलो अब मैं अपने देश को बदलूंगा. मैं अपनी कोशिश में लग गया पर मैंने महसूस किया कि वहां भी मैं खुदको असमर्थ ही पाया. और इस तरह मेरी उम्र 40 साल हो गयी, फिर खयाल आया कि चलो अब अपने राज्य को बदलता हूँ. अब मैंने राजनेता बनने की ठानी परंतु मुझसे भी बड़े दिग्गज इस काम में पहले से लगे थे और मैं हार गया.
अब मेरी उम्र 50 साल हो गयी. तो सोचा चलो अपने जिले को बदलता हूँ. मैंने समाज के लिए बहुत कुछ किया लेकिन जो बदलाव मैं देखना चाहता था वो नहीं हो सका. तब तक मेरी उम्र 60 साल हो गयी, फिर खयाल आया अपने परिवार को बदलता हूँ. मैंने परिवार के लोगों को खूब समझाया लेकिन उन्होंने मेरी एक न सुनी. अब मेरी उम्र 65 से ऊपर हो चुकी थी परंतु मैंने देखा सबकुछ अपने हिसाब से बदल रहा है न कि मेरे हिसाब से. फिर हारकर मैंने सोचा कि चलो अपने घर को बदलता हूँ. मैंने घर के बच्चो को समझाया ऐसे रहा करो, ये करा करो तो उन्होंने कहा आप हमें मत सिखाओ कैसे क्या करना है? हम सब जानते हैं. और इस तरह मैंने देखा कि अब तो दुनिया से विदा होने का समय आ चुका है.
तब मुझे जाकर ये लगा कि इस पूरी जिंदगी में मुझे जो सबसे पहले करना था वो पूरी जिंदगी के आखिरी दौर में समझ पाया, अगर मैं शुरू में ही खुदको बदल लेता तो शायद पूरी दुनिया ही मुझे बदली हुई नजर आती. हम जैसा सोचते हैं हमें वेसे ही लोग मिलने लगते हैं वैसा ही माहौल बनने लगता है. हम जैसा भी सोचते हैं वही शब्दों के माध्यम से व्यक्त करते हैं.
कभी कभी ज्यादा बोलना हमारे लिए मुसीबत बन जाता है और कभी न बोलने से भी कई काम जो हो सकते हैं वो नहीं हो पाते, इसलिए इतना ज्यादा भी न बोला जाए कि खुदके ही काम बिगड़ जाएं और इतना कम भी नहीं कि कोई काम भी न हो पाए.
हम शायद खुद अपने कर्मो का हिसाब न कर पाएं लेकिन इसी जीवन में हमें हमारे कर्मों का फल किसी न किसी रूप में मिलता है. वक़्त कभी भी सबूत या गवाह नही मांगता वो तो सीधा फैसला सुनाता है. बारिश की बूँदें भले ही छोटी हों लेकिन उनका लगातार बरसना बड़ी नदियों का बहाव बन जाता है, वैसे ही हमारे छोटे छोटे प्रयास भी जिंदगी में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं.
इसलिए कभी मायूस होकर हार न मानें वल्कि निरंतर सही दिशा में कार्य करते रहें. जिंदगी में जो चाहो हासिल कर लो, बस इतना ख्याल रखना कि आपकी मंजिल का रास्ता लोगो के दिलों को तोड़ कर नहीं बल्कि दिलों से होकर गुजरे.
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