सफलता और विफलता की अवधारणा
हम सभी को जीवन के किसी न किसी पड़ाव में कई बार निराशाओं और मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, हम जीवन के दौर में कभी-कभी इतना परेशान हो जाते हैं कि हमें उस समय कोई हल समझ नहीं आता. ये समझ नही आता कि क्या सही है? क्या गलत है? अगर आप भी किसी ऐसी ही परिस्थिति से गुज़र रहे हैं तो इस पोस्ट में आगे बढ़िए.
साउथ अफ्रीका के ऑस्कर पिस्टोरियस (Oscar Pistorius), जिनके गुटनो से नीचे पैर भी नहीं, उन्होंने सन 2008 में आयोजित हुए समर पैरालिंपिक्स (Summer Paralympics) में 100, 200 और 400 मीटर दौड़ में गोल्डमेडल जीतकर ये साबित कर दिया कि विकलांगता कहीं नही सिर्फ हमारे दिमाग में बैठी है.
ये बात सिर्फ गोल्डमेडल की नही है वल्कि एक इंसान की ऐसी प्रबल इक्षाशक्ति की है जिसने अपने शरीर की कमजोरी को अपनी कमजोरी न मानकर हार नही मानी और विश्व को एक नया संदेश दिया कि "जब टूटने लगे होंसला तो ये याद रखना बिना मेहनत के तख्तो-ताज नहीं मिलते,ढूंढ लेते हैं अंधेरों में भी मंज़िल अपनी,जुगनू कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते."
इसलिए दोस्तों, अपने जीवन के हर पल को उत्साह के साथ जियें, जब भी आपके अंदर निराशा आए तो उन लोगों के बारे में विचार करना जो चल नहीं सकते लेकिन उनकी दौड़ने की तीव्र इक्षाशक्ति है. इसलिए जीवन से कभी निराश न हों, जिंदगी तो कुदरत का दिया हुआ एक अद्भुत उपहार है.
समय आपके विपरीत हो सकता है लेकिन आपके पास अब भी सकारात्मक ढंग से सबकुछ बदलने की अद्भुत और असीमित क्षमताएँ हैं. अक्सर हमारे सामने मुसीबते आती है तो हम उनके सामने पस्त हो जाते हैं, हर व्यक्ति का परिस्थितियों को देखने का अपना अलग नज़रिया होता है. जब हमारी ज़िंदगी मे मुसीबतों का पहाड़ टूट पढ़ता है, उस कठिन समय मे कुछ लोग टूट जाते है तो कुछ सम्हल जाते है.
मनोविज्ञान के अनुसार इंसान किसी भी समस्या को दो तरीको से देखता है;
1.समस्या पर केंद्रित रहकर
2.समाधान पर केंद्रित रहकर
समस्या पर केंद्रित होने वाले अक्सर मुसीबतों में ही ढेर हो जाते हैं. इस तरीके के इंसान किसी भी मुसीबत मे उसके हल के बजाए उस मुसीबत के बारे मे ज्यादा सोचकर समस्याओं को और जटिल बनाते रहते हैं.
वही दूसरी ओर समाधान पर केंद्रित होने वाले लोग मुसीबतों मे उसके हल के बारे मे ज्यादा सोचते हुए वे उन मुसीबतों का डट के सामना करते हैं और अंत में सफलता प्राप्त करते हैं.
चलिए एक रियल लाइफ उदाहरण लेते हैं, जब कभी भी आप ट्रैफिक में फँस जाते हो तो आप क्या करते हो? अपनी गाड़ी को धीरे-धीरे आगे बढ़ाते रहते हो न? और ऐसा करने से आप वहां से कुछ समय पश्चात निकल जाते हो, वहीं आप दूसरी जगह कहीं देखोगे जहां ट्रैफिक पुलिस या ट्रैफिक सिग्नल नही होता वहां कुछ लोग जाम को और बढ़ा रहे होते हैं तब आपको गुस्सा भी आती होगी. लेकिन जब जाम भयंकर हो जाता है तब हम आप में से ही कोई इशारे कर करके उस जाम से निकलने का उपाय भी कर रहा होता है ऐसा करने से स्थिति सामान्य होने लगती है. बस ऐसा ही तो हमें जीवन में भी करना होता है.
धीरे-धीरे बस प्रयास करते रहो और एक वक्त आएगा जब आप उन परेशानियों के ट्रैफिक से बाहर निकल आओगे. आप कितने कीमती हो इसे मैं ऐसे कह सकता हूँ कि एक इंसान करोड़ों रुपये बना सकता है पर करोड़ों रुपए एक इंसान नही बना सकते. अगर कोई आपसे कहे कि ये काम आसान नही है तो बिल्कुल मत घबराना, बेशक वो आसान न हो लेकिन नामुमकिन नही है. हमारा किसी भी काम पर फोकस न होने की वजहों मैं एक ये भी है कि हम आज मैं यानी अभी मैं नही जी रहे होते हैं.
आपका कोई दोस्त या परिचय वाला जिसे आपने अपने पास बुलाया, आने के बाद अब वो सामने होकर भी आपके करीब नही है यानी वो फ़ोन पकड़े है कही बार बार फेसबुक खोलेगा या व्हाट्सअप चेक करेगा या किसी को कॉल लगाने लगेगा. मतलब वो फिजिकली आपके पास है पर मानसिक रूप से वो वहां पूरी तरह से नही.
फिर कुछ समय बाद जब वो वहां से चला गया और उस इंसान से मिला जिस से वो आपसे मिलने के दौरान चैट कर रहा था तब वो वहां भी ऐसा करता है अब वो आपका मैसेज चेक करेगा, उसको भी समय नही देगा. हमें कोई भी काम तभी करना चाहिए जब हम उसके लिए फिजिकली और मेंटली दोनो रूप में उपस्थित रह सकें. अर्थात अगर आप अपने दोस्त से मिले हैं तो सबसे बहुमूल्य अभी वही है जो आपके सामने है. अगर ऐसा नही है तो आपको उसके सामने होना ही नही चाहिए था.
आपने जितने भी सफल लोग देखे हैं, आप जरा उनके स्वभाव को नोटिस कर विश्लेषण करना कि वो किसी से मिलते समय क्या एक्टिविटी कर रहे हैं? आप वर्तमान में खुश रहने का प्रयास करें,भविष्य आश्वासन देता है गारंटी नही.
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