उम्मीद का दिया कभी बुझने नहीं देना



कहते हैं उम्मीद कभी आपको छोड़कर नहीं जाती, आप ही उसे छोड़ देते हैं. इस बात को मैं आज एक कहानी के माध्यम से समझाता हूँ. एक घर मे पाँच दिए जल रहे थे. अचानक एक दिन एक दिए ने कहा,  ''इतना जलकर भी मेरी रोशनी की लोगों को कोई कदर नही है, इस से अच्छा कि मैं बुझ जाऊं.'' और वह दिया खुद को व्यर्थ समझ कर बुझ गया. उस दीये का नाम था "उत्साह". जब जीवन से उत्साह चला जाता है तो जिंदगी बेजान सी हो जाती है.

यह देख दूसरा दिया कहने लगा, "अब मुझे भी बुझ जाना चाहिए क्योंकि निरंतर रोशनी देने के बावजूद भी लोगों को मेरे महत्व का पता नहीं चल रहा है". और इतना कहकर वह दिया भी बुझ गया जिसका नाम था "शांति". यदि जीवन में शांति न हो तो मन बेचैन हो उठता है तब इंसान को कोई तरीका या रास्ता समझ नहीं आता.

उत्साह और शांति के बुझने के बाद तीसरा दिया भी अपनी हिम्मत खो बैठा और बुझ गया इसका नाम था "हिम्मत". 
जब इंसान हिम्मत खो देता है तो उसकी कार्य-क्षमता प्रभावित हो जाती है. उत्साह, शांति और हिम्मत के बुझते ही चौथा दिया स्वतः ही बुझ गया जिसका नाम था "समृद्धि". हम जानते हैं कि यदि जीवन से उत्साह, शांति और हिम्मत खत्म हो जाएं तो समृद्धि तो स्वतः ही खत्म हो जाती है.

चारों दिये बुझने के बाद केवल पाँचवा दिया था जो अभी भी जल रहा था. हालाँकि यह दिया सबसे छोटा था, मगर फिर भी वह निरंतर जल रहा था. तभी उस घर में एक लड़के ने प्रवेश किया. उसने देखा कि उस घर मे सिर्फ एक ही दिया जल रहा है, यह देख वह खुशी से झूम उठा.

हालाँकि चार दिये बुझने की वजह से वह दुःखी नही हुआ बल्कि यह सोचकर खुश हुआ कि कम से कम एक दिया तो है जो अभी भी जल रहा है. उसने तुरंत उस दिये को उठाया और बाकी के चारों दीये फिर से जला दिए. उस पाँचवे दिये का नाम था "उम्मीद".

इसलिये दोस्तों, हमेशा अपने मन मे "उम्मीद का दिया" जलाए रखना. जब सारे दिए बुझ जाएं तब एक यही दिया है जिससे बाकी के दियों को पुनः जलाया जा सकता है.

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