वो सबकुछ सहती है:Inspirational thoughts

वो सब कुछ सहती है!वो अगर बहन हो तो भाई के लिए मरती है.वो अगर माँ हो तो बच्चे के लिए मरती है.वो अगर पत्नी हो तो अपने पति की हर खुशी के लिए मरती है.हर दुख-दर्द सहती है,पर सबके लिए मुस्कुराहट की वजह बनती है.जन्म से लेकर आखिरी सांस तक उसका समर्पण कोई याद नहीं करता.उसी के लिए सारी बंदिशें उसी के लिए सारी दीवारें बनी हैं. अगर वह अपने लिए जिए तो हजारों बुराइयां सहती है. फिर भी शांत और मुस्कुराती हुई आंचल में छुपी रहती है.जब घर में सामान भाई बिखेर देता है तो संभाल- संभाल कर वो उसे रखती है.खुद हर दुख सहती है और सब को जीने का ढंग सिखा देती है.इतने त्याग के वावजूद भी वो कोख में ही मार दी जाती है.कोख में पल रही एक मासूम की अभिव्यक्ति शायद इस तरह ही होगी,"जन्म दे मुझे माँ!मुझे अपनी कोख में ना मार.मैं भी तेरा दर्शन करना चाहती हूं.मैं लड़की हूं तो क्या हुआ,ख्याल में भी तेरा रखूंगी.मैं भी तेरा नाम रोशन करूंगी माँ.मैं तेरा बेटा भी बनकर दिखाउंगी माँ.तेरी कोख में कर रही हूं इंतजार,भाई को तूने जन्म दिया मुझे भी संसार में आने दे माँ.लोग लड़के के जन्म पर खुशी मनाते हैं तू मुझे जन्म देकर खुशी मना माँ.मैं भी तेरी गोद में सोना चाहती हूं,तेरी लोरियां सुनना चाहती हूं.तू ही मुझे दुनिया में ला सकती है,तू ही मेरा भगवान मेरा खुदा है मां.तेरे हर सपने को पूरा करूंगी, तू जो कहेगी वह मैं करूंगी,ना मैं मांगूंगी महंगे कपड़े,ना मैं फालतू का खर्च करूंगी माँ.मांगूंगी बस तेरा ढेर सारा प्यार माँ.तुम मेरी शादी के खर्च से परेशान ना होना मैं खूब मेहनत करूंगी और और तेरा नाम रोशन करूंगी माँ.मेरे दहेज की फिकर ना कर,मैं हूं ना तेरी बेटी मां.सब तो कहते हैं लड़की है लड़कों से बेहतर अब तो तू मुझे जन्म दे न माँ!"सख्त कानून के बावजूद भी कन्या भ्रूण हत्या रुकने का नाम नहीं लेती वहीं, इस देश में एक ऐसा भी गांव है,जहां बेटी होने पर खुशियां मनाई जाती है.राजस्थान का एक गांव पिपलन्त्री,जहां बेटी के जन्म लेने पर 111 फलदार पेड़ लगाए जाते हैं तथा गांव वालों द्वारा उनकी रखवाली भी की जाती है.इतना ही नहीं,बेटी के सुरक्षित भविष्य के लिए उसके माता-पिता को एक शपथ पत्र भी देना होता है,जिस पर लिखा होता है बेटी की शादी 18 वर्ष से पहले नहीं करेंगे,उसे नियमित स्कूल भेजेंगे और लगाए गए पौधों की जिम्मेदारी भी उठाएंगे.यह परंपरा गांव के एक सरपंच की बेटी की कम उम्र में मृत्यु हो जाने की याद में शुरू हुई थी,जिसे लोग आज भी निभा रहे हैं.यह गांव उस शहरी आबादी को भी एक सकारात्मक संदेश देता है,जहां के पढ़े-लिखे,टाई लगाकर लक्ज़री गाड़ियों में घूमने वाले बुद्धिजीवियों द्वारा आज भी बेटियों को बोझ ही समझा जाता है.और कानून को किनारे कर आए दिन बेटियां पैदा होने से पहले ही मार दी जाती हैं.बेटे की चाहत तथा दहेज इसके लिए ब्यापक रूप से जिम्मेदार है,गरीब वर्ग अपनी बेटी के लिए 20-30 लाख दहेज देने की हैसियत नहीं रखता,इसलिए भविष्य में लाखों रुपये दहेज की कल्पना करके ही कोख में बेटी को मृत्यु की भेंट चढ़ा दिया जाता है.दोस्तों अगर आप काबिल है तो आप लाखों-करोड़ों रुपए कमा लेंगे.पर क्या दहेज में कुछ लाख रुपए लेने से या उन्हें लेकर आप जिंदगी का कितना काम कर लेंगे?शायद साल 2 साल या अधिक से अधिक 4 साल.जरा सोचिए अगर हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा?सरकार ने तो कानून पहले से ही बनाए हैं.वक़्त हैं हम सभी के द्वारा बदलाव लाने का.दोस्तों,अगर आपका दिल भी मेरी तरह से यही मानता है और यदि आप अपने लिए जीवनसाथी का चुनाव करें तो अपने लिए एक नेक दिल जीवनसाथी का चुनाव करें,क्योंकि वही आपका जीवनभर साथ देगा न कि शादी में दिया हुआ दहेज.आप क्या सोचते हैं इस विषय में हमें कमेंट कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें.
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