ये बातें आपको खुश रहना सिखा देंगी: Inspirational thoughts by Kuldeep Singh
सभी को कुदरत ने इंसान बनाया फिर कौन खुदकी किस पहचान को बनाता है ये खुदपर निर्भर है.क्या कहीं कोई बाध्यता है कि कोई दिखने में स्मार्ट होगा तभी वो कुछ बन पाएगा?कोई अच्छी बातें करता है कोई खराब बात करता है उसी हिसाब से लोग उससे जुड़ते हैं तो आप अगर मान लो कि मुझे हमेशा खुश रहना है फिर बाहर की कोई भी चीज आप पर कोई असर नहीं डाल सकती.तो निश्चित तौर पर आप उन चीजों को इग्नोर करना सीख जाएंगे जो आपको दुखी करती हों.अगर आप सोचोगे इस चीज में कमी है या उस चीज में कमी है तो आप उन चीजों में और अधिक फँसते चले जाएंगे.परिणामस्वरूप, फिर और समस्याएं पैदा होना शुरू हो जाएंगी.याद रखें हमारी सोच ही समस्या है और हमारी सोच ही समाधान है,फर्क बस नज़रिये का है.अगर समस्याएं नहीं होती तो कोई उपाय क्यों खोजता?मतलब समस्याओं की भी अपनी एहमियत होती है.वरना अगर आपको भूख नहीं लगी तो आप खाना तो जबरजस्ती खाएंगे नहीं,वेसे ही समस्याएं जब होंगी तभी आप उनके समाधान खोजेंगे.
एक व्यक्ति दिल्ली से करीब 60km दूर रहता है और आज वो अपनी गाड़ी से दिल्ली जाना चाहता है.वो अपने बच्चे के साथ ट्रेवल कर रहा है जो गाड़ी को ड्राइव कर रहा है दिल्ली जाने के लिए दो रास्ते हैं; एक नेशनल हाईवे और दूसरा बाईपास रोड.जब रास्तों का चुनाव होता है तो वह व्यक्ति अपने बच्चे से नेशनल हाइवे से चलने को कहता है और नेशनल हाईवे पर 20km आगे पहुचते ही एक चौराहे पर बहुत ट्रैफिक मिलता है जिसमें उसका जिसमें तकरीबन आधे घंटे का समय व्यर्थ चला जाता है अब वो व्यक्ति अपने बच्चे को डाँटता है, अगर हमने बाईपास रोड का चुनाव किया होता तो ज्यादा बेहतर रहता इस ट्रैफिक से बच जाते बच्चे को आगे डाँटता है कि तुझ में इतना दिमाग नहीं था बेटा बोला,"पापा आपने ही तो नेशनल हाईवे से चलने को बोला था."इसपर और गुस्से में व्यक्ति ने कहा,"तू गाड़ी चला रहा है या मैं?"लेकिन उस व्यक्ति ने ये नहीं सोचा कि हो सकता है कि बाईपास रोड पर भी ट्रैफिक मिल जाता तब क्या करता,फिर वहां पर ये बोलता कि नेशनल हाईवे से चलते तो ज्यादा सही रहता हैं न?
तो बाईपास रोड का खड़े होकर तो बाईपास रोड पर वो व्यक्ति कहता,"अगर हम नेशनल हाईवे से चले होते तो ज्यादा बेहतर होता" तो प्रॉब्लम कहां है ये मालूम नहीं. प्रॉब्लम परिस्थिति में नहीं प्रॉब्लम प्लानिंग में है.आप गूगल मैप का इस्तेमाल करके दोनों रास्तों के ट्रैफिक का स्टेटस देख सकते थे, या उस परिस्थिति में जहां आप ट्रैफिक में फँसे हों, उसका आनंद लो एंजॉय करो.किसी अच्छे टॉपिक पर बात कर लो जिससे कि आधा घंटा आराम से गुजर जाए.ये ठीक वैसा ही है अगर आपसे कहा जाए कि आधा घंटा आपको बस स्टॉप पर दादाजी के आने का इंतज़ार करना है,तो ये काफी मुश्किल भरा हो सकता है या 1 घंटा आपको अपनी गर्लफ्रैंड के साथ घूमना है तो पता भी नहीं चलेगा कब 1घंटा गुज़र गया.यहां आप अपना एक और घंटा गुज़ार देते तो भी कम लगता है लेकिन दादाजी के इंतज़ार में तो एक-एक पल भारी हो जाएगा,हैं न. तो लाइफ को एंजॉय करना सीखिए,जिंदगी में परिस्थितियां तो ऊपर नीचे होती ही रहेगी.सारी परिस्थितयां आपके फेवर में कभी हो ही नहीं सकती लेकिन आप अपनी प्लानिंग से अपने समय को अपने अनुसार अच्छा बना सकते हैं यह आप पर ही निर्भर करता है कि आप चीज़ों को किस तरह से स्वीकार करते हैं.
मेरे दो दोस्त है एक काफी बोरिंग टाइप का है और दूसरा काफी हंसमुख है तो मेरा मन हमेशा ही उस हंसमुख वाले के पास जाने का करता है क्योंकि सामने आते ही उसके चेहरे पर मुस्कान ही रहती है और कॉमेडी ही निकलती है चाहे कितना भी माहौल खराब हो.और जब भी बोरिंग टाइप वाले के पास जाता हूँ तो वो हमेशा ऐसी बातें करेगा कि अंदर-अंदर ऐसा खुद पर शक होने लगे कि अरे यार मैं इस दुनिया में क्यों आ गया.हमेशा दूसरों की बुराई करेगा लेकिन खुदके अंदर नहीं झांकेगा कि उसकी खुदकी आदत की वजह से लोग उसके पास नहीं जाते हैं और हंसमुख वाले को यह पता है कि उसकी अच्छी आदत की वजह से लोग उसके पास कैसे चले आते हैं.तो मतलब ये है कि सब कुछ आपके अंदर ही है हम जैसे होते हैं वैसे ही चीजों को अट्रेक्ट करते हैं.चीज़ें आपके पास वैसे ही आती हैं जैसा आप उनके प्रति अपना व्यवहार रखते हैं.यह ठीक चुंबक की भौतिक प्रकृति के जैसा है.मतलब मैगनेट लोहे की वस्तुओं को आकर्षित करती है तो वो उसकी खुदकी फिजिकल प्रॉपर्टी है न कि लोहे की.क्या प्लास्टिक लोहे को आकर्षित करेगी नहीं न.
खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं जिसे भी देखो परेशान बहुत है करीब से देखा तो निकला रेत का घर मगर दूर से इसकी शान बहुत है.कह तो हर कोई देता है कि सच का कोई मुकाबला नहीं मगर आज झूठ की पहचान बहुत है मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी,यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं,यूँ न हो मायूस ऐ मेरे दोस्त न डर मुश्किलों भरे दौर से,होगा तेरा भी कोई किनारा जरूर क्योंकि तेरी कश्ती में अभी जान बहुत है.प्रसन्न व्यक्ति वह है जो निरंतर स्वयं का मूल्यांकन एवम् सुधार करता है,जबकि ऐसा होता नहीं इंसान पहले दूसरे की टांग खीचेगा और उसे सुधारने में अपना कीमती समय और दिमाग खर्च करके रिजल्ट जब जीरो मिलेगा तब हैरानी ही होगी.इसलिए दुःखी वह है जो दुसरो का मूल्यांकन करता रहता है.मान लीजिए आप चाय का कप हाथ में लिए खड़े हैं और कोई आपको धक्का दे देता है तो क्या होता है ?आपके कप से चाय छलक जाती है। अगर आप से पूछा जाए कि आप के कप से चाय क्यों छलकी? तो आप का उत्तर होगा "क्योंकि उसने मुझे धक्का दिया हैं न.असल मेंआपके कप में चाय थी इसलिए छलकी।पक्की बात है कि आप के कप से वही छलकेगा जो उसमें है.इसी तरह जब ज़िंदगी में हमें धक्के लगते हैं लोगों के व्यवहार से,तो बड़ा बुरा सा फील आता है कि दुनिया में लोग मेरी कदर ही नहीं करते लेकिन उस समय हमारी वास्तविकता ही छलकती है इंसान का सच उस समय तक सामने नहीं आता, जब तक उसको धक्का न लगे, तो देखना ये है कि जब आपको धक्का लगा तो क्या छलका चेक करना इनमें से जैसे धैर्य, मौन, कृतज्ञता, स्वाभिमान, निश्चिंतता, मानवता, गरिमा या क्रोध, कड़वाहट, पागलपन,ईर्ष्या, द्वेष,घृणा हाँ तो क्या छलका आपके अंदर से.निर्णय हमारे वश में है,चुन लीजिए।
क्या खूब लिखा है किसी ने जरा गौर से सुनिए,
अपने मनोबल को इतना सशक्त कर,
कठिनाई भी आने से न जाए डर।
आत्मविश्वास रहे तेरा हमसफर,
हौसला अपना बुलंद कर लो,
साहस व हिम्मत को संग कर लो।
निर्भय होकर आत्मविश्वास से बढ़ो,
संयम व धैर्य से सफलता की सीढ़ी चढ़ो।
जब कभी कर्तव्य के मार्ग पर,
विपत्ति व विघ्न तुम्हें सताएंगे।
जब कभी हारकर या विवश होकर,
निराशा के बादल छा जाएंगे।
हार न मानने का जज्बा तुम्हें उठाएगा,
तुम्हारा अडिग हौसला तुम्हें बढ़ाएगा।
आखिरकार देखना तुम्हारे आगे,
धरती हिल जाएगी, आसमां झुक जाएगा।
भय-विस्मय का अब अंत करो,
आते हुए दुखों को पसंद करो।
कर्म ज्यादा व बातें चंद करो,
हौसला अपना इतना बुलंद करो।
दुखों का पहाड़ टूटने पर भी,
सीना ताने खड़ा रह पाएगा।
दर्द का अंबार फूटने पर भी,
सर उठाकर लगातार चलता जाएगा।
जो अपने पक्के इरादों के आगे,
मुसीबतों के घुटने टिका जाएगा।
वही दृढ़ मनोबल वाला मनुष्य,
जिंदगी की यह जंग जीत पाएगा।
हमारे तो खून में ही वफादारी है लोग डायलॉग तो मार देते हैं,असल में लेबोरेटरी मैं सैंपल देकर तो हमारे अंदर की छुपी बीमारियों की जांच हो सकती है लेकिन कल कोन किसका साथ देगा और किसको धोखा देगा इसकी जांच अभी तक अवेलेबल नहीं है.
झाँक रहे है इधर उधर सब,अपने अंदर झांकें कौन,ढ़ूंढ़ रहे दुनियाँ में कमियां,अपने मन में ताके कौन,दुनियाँ सुधरे सब चिल्लाते,खुद को आज सुधारे कौन,हम सुधरें तो जग सुधरेगा यह सीधी बात स्वीकारे कौन.
निर्णय हमारे वश में लो तो सही न लो तो जो हो रहा है वो होता ही रहेगा.जब दर्द और कड़वी बोली,दोनों सहन होने लगे,तो समझ लेना की जीना आ गया।ताज्जुब की बात है जीतने वाले अपना मेडल,सिर झुका के हासिल करते हैं.जरूरी नही कि हम सबको पसंद आए,बस जिंदगी ऐसे जिओ कि रब को पसंद आए.
मन और मकान को वक्त - वक्त पर साफ करना बहुत
जरूरी है,क्योंकि मकान में बेमतलब सामान और मन में बेमतलब गलतफहमियां भर जाती हैं,मन भर के जिओ मन में भर के मत जीयो.
परीक्षा हमेशा अकेले में होती हैं लेकिन उसका परिणाम सबके सामने होता है,इसलिए कोई भी कर्म करने से पहले परिणाम का जरूर विचार ज़रूरी है,लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सोचते सोचते कोई फैसला ही न ही ले पाएं.यानि फैसला लेने से पहले खूब सोचें,लेने के बाद सिर्फ उसे कैसे वो रूप दे सकते हैं इस पर ध्यान केंद्रित कर दें.
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