क्या सामने वाला व्यक्ति आपको नज़रंदाज़ करता है?
कभी-कभी आपको लगता है कि लोग फीलिंगलेस हो गए हैं लेकिन ये सच नहीं है एक क्रिमिनल शराब के नशे में दहाड़कर रोता है उसे ये लगता है कि दुनिया की उसके प्रति फीलिंग्स मर चुकी हैं.क्या दुनिया को इस से फर्क पड़ रहा है कि आप उसके लिए कुछ मायने रखते हैं?हाँ बिल्कुल,एक 2 साल का शिशु जो अपनी बात बोल नहीं पाता लेकिन उसकी माँ जानती है कि उसे कब दूध पिलाना चाहिए,वो इस से भी ज्यादा बेहतर समझती है कि कब उसे गर्मी या सर्दी लगेगी.अगर आप सामने वाले से ये उम्मीद करते हैं कि वो क्यों आपको नहीं समझता?असल मैं आप कोई कोडेड प्रोग्राम नहीं हैं जो वो आपको समझ नहीं सकता बस वो जाहिर नहीं करना चाहता या उसकी रुचि इस बात में नहीं है कि वो आपको कहकर बताए कि वो आपके लिए मरा जा रहा है.अगर हम ये कहें कि मानव जीवन बिना संवेदनाओं के असंभव है तो ये गलत नहीं होगा,संवेदनाएं एक रूप में आपकी चेतनाएं हैं जो आपको मानसिक और शारीरिक स्तर पर एक संदेश भेजती हैं.क्या कभी आपका हाथ ड्राई आयरन या प्रेस से छुला है?कितनी देर लगी थी आपको अपना हाथ हटाने में?शायद एक सेकंड से भी कम?असल में प्रेस के गर्म होने की जानकारी आपके दिमाग को न भी रही हो लेकिन आपकी स्पाइनल कॉर्ड ने तुरंत संदेश प्राप्त किया और ये सब बिना मष्तिष्क को बताए हो गया,असल में मस्तिष्क तक वो सिग्नल तो बाद में पहुँचा तब तक तो आप अपना हाथ प्रेस से हटा चुके थे,इसे रिफ्लेक्स एक्शन कहा जाता है.तो हम कह सकते हैं कि आपके भीतर या हर उस इंसान के भीतर चेतना है जो प्रेस के गर्म होने का तुरंत एहसास कर सकता है.क्या मैं गलत हूँ,हाँ आप मुझे गलत कह सकते हैं अगर मैं कुछ गलत बोल रहा हूँ यानि कि आपमें चेतना है कि आप मुझे निर्णायक रूप में लेते हैं.एक बार मैं जब मेडिकल स्टोर से दवा ले रहा था तो वहाँ काफी सारे लोग मौजूद थे,लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे कि वे एक-दूसरे से कोई मतलब नहीं रखते.अचानक उन्हीं में से एक व्यक्ति ने झगड़ा शुरू कर दिया,क्योंकि दवा लेने में उसे काफी देर हो चुकी थी.मेडिकल स्टोर से जैसे ही वो चला गया,अब बाकी के जो लोग थे उन्होंने उस व्यक्ति के व्यवहार की प्रतिक्रिया देना शुरू कर दिया.थोड़ी देर पहले जिन लोगों को कोई मतलब भी नहीं था लेकिन वे किसी खुफिया कैमरे की तरह एक-दूसरे पर नज़र रखे थे.कुल मिलाकर मनुष्य के अंदर चेतना होती ही है.मेरे,आपके या किसी अन्य के भीतर सभी के अंदर अलग-अलग भाव हैं;कोई कम भावुक दिखता है कोई ज्यादा.लेकिन इस से सच्चाई नहीं बदल सकती कि मनुष्य बिना चेतना के निर्जीव है.
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